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SPECIAL: जानिए राजस्थान के इस मंदिर के बारे में...जहां शिवलिंग दिन में तीन बार बदलता है अपना रंग

चंबल नदी के बीहड़ों में स्थित भगवान भोलेनाथ का अचलेश्वर महादेव मंदिर अगाध आस्था का केंद्र माना जाता है. कहते हैं यहां महादेव का शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है. महाशिवरात्रि के मौके पर यहां विशाल लक्खी मेले का आयोजन होता है.

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महादेव का शिवलिंग यहां दिन में तीन बार रंग बदलता है

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Published : Mar 10, 2021, 4:11 PM IST

Updated : Mar 10, 2021, 7:27 PM IST

धौलपुर. जिले की चंबल नदी के बीहड़ों में स्थित प्राचीन भगवान भोलेनाथ का अचलेश्वर महादेव मंदिर अगाध आस्था का केंद्र माना जाता है. कहा जाता है कि अचलेश्वर महादेव का शिवलिंग अद्भुत और चमत्कारिक है यही वजह की यह स्थान श्रद्धालुओं को सबसे अधिक आकर्षित करता है. कहते हैं अचलेश्वर महादेव का शिवलिंग दिन में तीन बार रंग बदलता है. सुबह के पहर इसकी आभा लाल रंग की होती है. दोपहर में यह केसरिया रंग का हो जाता है और शाम को इसका रंग सांवला हो जाता है.

महादेव का शिवलिंग यहां दिन में तीन बार रंग बदलता है

अचलेश्वर महादेव मंदिर पर महाशिवरात्रि को विशाल लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लाखों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं. चंबल के बीहड़ों में स्थित अचलेश्वर महादेव का मंदिर विशेष पहचान रखता है.

शिवलिंग की खुदाई हुई लेकिन नहीं मिला 'आदी और अंत'...

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, लगभग एक हजार वर्ष पूर्व अद्भुत एवं चमत्कारी शिवलिंग का उद्गम हुआ था. श्रद्धालुओं के मुताबिक लगभग हजार वर्ष पहले चंबल के बीहड़ों में कुछ चरावाहों को एक पत्थर की पिंडी दिखाई दी थी. जंगल में बसने वाले आसपास के ग्रामीणों ने जब शिवलिंग की खुदाई की तो इसका आदी अंत नहीं पाया गया. करीब 30 मीटर तक इसकी खुदाई तत्कालीन समय पर कराई गई थी लेकिन शिवलिंग का अंतिम छोर नहीं मिलने पर खुदाई को रोक दिया गया.

चंबल नदी के बीहड़ों में स्थित प्राचीन भगवान भोलेनाथ का अचलेश्वर महादेव मंदिर

इसके बाद आसपास के लोगों में शिवलिंग को लेकर श्रद्धा उमड़ पड़ी. श्रद्धाओं ने जंगल में ही प्राण प्रतिष्ठा करके करीब 20 फीट ऊंचाई पर छोटे से परकोटे में मंदिर की स्थापना की गई. अचलेश्वर महादेव का शिवलिंग अद्भुत एवं चमत्कारी होने पर श्रद्धालुओं की अगाध आस्था का केंद्र बन गया. लेकिन चंबल नदी के धनघोर बीहड़ में होने के कारण तत्कालीन समय पर श्रद्धालुओं का आना-जना कम यहां रहता था.

मंदिर परिसर पर पहुंचे श्रद्धालु

कभी डकैत और डाकू करते थे यहां पूजा...

अब से करीब 30 वर्ष पूर्व चंबल के डकैत और डाकू यहां पूजा अर्चना करने के लिए अचलेश्वर महादेव मंदिर पहुंचते थे. चंबल में बसने वाले डकैत अचलेश्वर महादेव मंदिर पर अनुष्ठान भी किया करते थे. लेकिन समय के साथ हालात परिस्थितियां भी बदली और धीरे-धीरे मंदिर का विकास होने लगा. चंबल के बीहड़ों में डकैतों और डाकुओं की कमी होने के साथ ही यहां आसपास के श्रद्धालुओं का आना-जाना शुरू हो गया और धीरे-धीरे मंदिर का विकास शुरू हुआ.

...मनचाहा वर और वधु पाने के लिए लोग यहां मानते हैं मन्नत

चंबल की घाटियों में ही यहां सड़क का निर्माण कराया गया है जिससे श्रद्धालुओं के लिए आने-जाने का रास्ता सुगम हो गया है. मौजूदा वक्त में अचलेश्वर महादेव का ऐतिहासिक और चमत्कारी यह मंदिर जन-जन की आस्था का केंद्र बन चुका है. मंदिर पर हमेशा सहस्त्र धारा, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप, रुद्री पाठ, रामचरितमानस पाठ के साथ श्रद्धालुओं द्वारा भंडारे लंगर लगाए जाते हैं.

यहां दूर दूर से लोग आते हैं भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए

यहां आने वाले भक्त और श्रद्धालुओं का ऐसा मानना है कि भगवान अचलेश्वर सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करते हैं. मन वचन और कर्म से जो भी भगवान अचलेश्वर के सामने पहुंचता है उसकी सभी मनोकामनाएं यहां पूरी होती हैं.

अचलेश्वर महादेव की शिवलिंग

ऐसा भी माना जाता है कि कुंवारे युवक-युवतियों द्वारा उपवास और व्रत रखने से मनचाहा वर और वधु मिलती है. यहां हर सोमवार और अमावस्या के दिन भारी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यहां महाशिवरात्रि के मौके पर विशाल लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है. महाशिवरात्रि पर्व पर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के लाखों की सख्या में श्रद्धालु भगवान अचलेश्वर के दरबार में मत्था टेकने पहुंचते हैं.

Last Updated : Mar 10, 2021, 7:27 PM IST

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