धौलपुर. सैपऊ कस्बे में स्थित महादेव मंदिर सदियों से आस्था का केन्द्र रहा है. मंदिर कई मायनों में खास है. जितनी इससे जुड़ी किवंदतियां रोचक हैं उससे कहीं कम इसकी साज सज्जा भी नहीं. इसकी स्थापत्य कला सवर्णिम इतिहास की कहानी सुनाती है. मौर्य काल की छाप इसमें दिखती है. महादेव के अनंत भक्त प्रभु श्रीराम यहां पधारे थे और उन्होंने गुरु संग शिवलिंग रच डाला था (Biggest Shivlinga Of Asia). शायद तभी मंदिर को राम रामेश्वर नाम से भी जाना जाता है.
कहते हैं कि एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े शिवलिंग यहीं पर हैं इतना ही नहीं दक्षिण भारत में रामेश्वरम के बाद दूसरे स्थान पर वर्तमान में भी अपनी भव्यता एवं विशालता को कायम किए हुए है. धौलपुर जिले के सैंपऊ कस्बे से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित मंदिर महाराजा भगवंत सिंह और उनके संरक्षक कन्हैयालाल राजधर की धार्मिक आस्था का परिचायक भी है.
सदियों पुराना मंदिर:मंदिर में स्थापित शिवलिंग करीब सात सौ वर्ष पुराना है. रोचक कथा 1305 संवत से जुड़ी है. आखिर कहानी क्या है इस मंदिर की? वर्तमान रूप में दुनिया के सामने कैसे आया ये? किसके परिश्रम का फल है महादेव मंदिर? जिज्ञासुओं के सवालों को जवाब देता एक किस्सा है. कहा जाता है तीर्थाटन करते हुए यहां पहुंचे श्याम रतन पुरी ने एक पेड़ के नीचे अपना धुना लगा लिया. कुछ दिन बाद उन्हें स्व अनुभूति हुई कि यहां ईश्वर का वास है.
जितना दबाया उतना ऊंचा उठा शिवलिंग: पुरी ने झाड़ियों को हटाकर खुदाई की तो शिवलिंग दिखाई दिया. खुदाई करते समय शिवलिंग खंडित हो गया और खंडित मूर्ति को निषेध मानकर उन्होंने मिट्टी से दबाना शुरू किया. लेकिन मूर्ति तो दबी ही नहीं बल्कि जितना दबाते गए वो उतनी ही बाहर निकलती गई. आठ फीट तक ढेर लगाने के बाद भी शिवलिंग दिखता ही रहा. अंतत भोले बाबा की महिमा के सामने नतमस्तक हो उन्होंने गोलाकार चबूतरा बना शिवलिंग की पूजा अर्चना शुरू कर दी.
हतप्रभ करती है वास्तुकला : जमीन से करीब आठ फीट ऊंचाई पर है मंदिर. भव्य और किलेनुमा तीन प्रवेश द्वार हैं और बीस सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर में घुसते हैं. पचास गुणा साठ फीट लम्बे चौड़े चौक में तीन विशाल बारादरी बनी है. जिसमें धौलपुर के लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है. चौक के बीच मे अष्टकोण की आकृति में बने शिवालय मे पौराणिक शिवलिंग स्थापित है. शिवालय के आठ द्वार हैं. शिखर बंध मंदिर चौक से 42 फीट और भूतल से 50 फीट ऊंचा है. शिवलिंग भी चौक से आठ फीट नीचे भूतल तक है. गुफानुमा द्वार से भूतल तक शिवलिंग के निकट जाने का रास्ता भी है. भूतल से मंदिर चार मंजिला है, जो दूर से ही अपनी भव्यता का आभास कराता है.