धौलपुर. जिले के सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के लिए स्वीकृत की गई क्षेत्रीय ऑफसेट योजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. पिछले लगभग 7 वर्ष से कछुआ चाल की गति से परियोजना का काम संचालित है. सरकारी अधिकारी एवं परियोजना का काम करा रही फर्म की मिलीभगत के कारण परियोजना का काम लगातार पिछड़ रहा है, जिसके कारण उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ पानी से अभी भी सूखे हैं.
7 साल से अधर में लटकी क्षेत्रीय ऑफसेट योजना ग्रामीण एक-एक बूंद पानी की जद्दोजहद कर गुजर-बसर कर रहे हैं. वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को सवा 32 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति जारी कर हरी झंडी दी थी, जिसकी जिम्मेदारी चेन्नई की फर्म में सिर्फ श्रीराम ईपीसी को दी गई थी. लेकिन फर्म की लेटलतीफी के कारण परियोजना अधर में लटक रही है.
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गौरतलब है कि वर्ष 2013 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विधानसभा के अंतिम सत्र में सैपऊ उपखंड के 44 गांव के ग्रामीणों को खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए चंबल लिफ्ट योजना से क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को जोड़ने की हरी झंडी दी थी. सरकार ने सवा 32 करोड़ के टेंडर जारी कर चेन्नई की फर्म मैसर्स श्रीराम ईपीसी को परियोजना का काम करने का जिम्मा दिया था.
पेयजल विभाग ने जुलाई 2015 में पानी सप्लाई शुरू करने के निर्देश भी दिए थे. वर्ष 2013 से मौजूदा वक्त तक परियोजना का काम कछुआ चाल से भी धीमी गति से चल रहा है. लगभग 7 वर्ष का समय गुजर जाने के बाद भी परियोजना का काम धरातल पर पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.
उपखंड इलाके के 44 गांव में खारे पानी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है. खारे पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए सरकार ने क्षेत्रीय ऑफसेट योजना को हरी झंडी दी थी, लेकिन सिस्टम की नाकामी के कारण 44 गांव के ग्रामीणों के कंठ सूखे हैं. हालांकि, पेयजल विभाग का दावा है कि परियोजना का काम अंतिम चरण में चल रहा है, लेकिन धरातल पर परियोजना की शुरुआत कब होगी इसका जवाब किसी के भी पास नहीं है.
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प्रोजेक्ट के सुपरवाइजर से जब ईटीवी भारत ने जानने की कोशिश की तो जानकारी नहीं होने का हवाला देकर पल्ला झाड़ दिया. उधर, उपखंड इलाके के ग्रामीणों में प्रशासन एवं सिस्टम के प्रति भारी आक्रोश देखा जा रहा है. ग्रामीणों का कहना है कि लगभग 7 वर्ष से परियोजना का काम चल रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर परियोजना का काम पूरा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.
सिस्टम की नाकामी की बात की जाए तो अभी तक आधा दर्जन गांव में टंकियों तक का निर्माण पूरा नहीं हो सका है. ऐसे में समय पर पानी की सप्लाई शुरू होना ग्रामीणों के लिए सपने के समान साबित हो रहा है.