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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: दाैसा में सोशल डिस्टेंसिंग का पालना करते हुए विधि-विधान से हो रही पूजा अर्चना - मेहंदीपुर बालाजी में जन्माष्टमी

कोविड-19 संकट के बीच देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम देखने को मिल रही है. इस बीच मेहंदीपुर बालाजी में भी मंगलवार को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है. मंदिरों बंद होने से श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है.

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इतिहास में पहली बार बंद मंदिर में जन्म लेंगे नंदलाल

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Published : Aug 11, 2020, 3:22 PM IST

मेहंदीपुर बालाजी (दाैसा).कोविड-19 संकट के बीच देशभर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम देखने को मिल रही है. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का 5248वां जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ बंद मंदिर में ही मनाया जाएगा, जिसमें श्रद्धालुओं का प्रवेश निषेध है. जन्माष्टमी का पर्व 11 और 12 अगस्त को 2 दिन का मनाया जा रहा है. स्मार्त संप्रदाय 11 अगस्त मंगलवार को मना रहे हैं. वहीं वैष्णव संप्रदाय द्वारा 12 अगस्त बुधवार को मनाएंगे. ऐसे में जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिन की मनाई जाती रही है.

मंगलवार को मेहंदीपुर बालाजी में मध्य रात्रि 12 बजे बंद मंदिर में कान्हा जन्म लेंगे. बालाजी मंदिर बंद परिसर में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते विधि-विधान के अनुसार, सभी कार्यक्रम भव्य और दिव्यता के साथ मनाए जा रहे हैं. भक्त अपने नटखट कन्हैया का जन्मोत्सव मनाने के लिए आतुर हैं. मंदिर बंद होने के कारण भक्त अपने घरों पर ही जन्मोत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं.

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मंदिर में जन्माष्टमी के अवसर पर प्रभु को पंचामृत स्नान करवाया जाता है. पंचामृत दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और जल से तैयार होता है. इस मौके पर प्रभु का नवीन पोशाक पहनाकर विशेष शृंगार भी किया जाता है. 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण के जन्म पर घंटे घड़ियाल बज उठेंते है और भगवान श्री कृष्ण को बालाजी महाराज के समक्ष चांदी के पालने में विराजमान कर महाआरती की जाती है. भगवान श्री कृष्ण से कोविड-19 के संकट को दूर करने की विशेष प्रार्थना की जाएगी. इसी समय मेहंदीपुर बालाजी की अधिकांश लोग कोविड-19 संकट के चलते मंदिर बंद होने के कारण अपने घरों में ही मंदिर के साथ भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव मनाएंगे.

बुराई का अंत करने भगवान श्री कृष्ण ने अवतार लिया था

वेद और पुराणों के अनुसार कई हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग में जब धरती पर पाप बहुत अधिक बढ़ चुका था, उस समय धरती माता राक्षसों के अत्याचारों से अत्यंत दुखी होकर गाय का रूप धारण करके अपने उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई और अपनी समस्या से अवगत कराया. इस पर ब्रह्मा जी अपने साथ सभी देवताओं और पृथ्वी को भी साथ में लेकर क्षीर सागर में विष्णु जी के पास गई.

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ब्रह्मा जी और सभी देवताओं के साथ पृथ्वी को देखकर श्री नारायण भगवान ने उनसे अपने पास आने का कारण पूछा, तो पृथ्वी माता बोली हे प्रभु मैं पापों के बोझ से दबी जा रही हूं. मुझे मुक्ति दीजिए. इस पर भगवान श्री हरि बोले हे देवी मैं वासुदेव देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लूंगा. उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद महा को कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल कोठरी में देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में इस धरती पर अवतरित हुए और पृथ्वी से पाप के बोझ को कम किया.

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