दौसा.खादी को लेकर लंबे समय से यह बहस चलती आ रही है. यह बहस कई बिंदुओं पर होती है. पहली क्या खादी आज के दौर में जहां दुनिया भर की मल्टीनेशनल कंपनियां कपड़ों के बाजार में हावी हैं, क्या ऐसी मल्टीनेशनल कंपनियों से खादी मुकाबला कर पाएगी. क्या नौजवानों की पहली पसंद खादी बन पाएगी. जहां आम धारणा है कि खादी से बने कपड़े पुराने फैशन के माने जाते हैं लेकिन एक्सपर्टस का कहना है कि खादी का चलन धीरे-धीरे युवाओं में बढ़ा है.
महात्मा गांधी ने खादी को जहां आत्मनिर्भरता से जोड़ा था और उनका यह प्रयोग काफी सफल भी हुआ था. स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेजी सामान के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने पर जोर देने का ही परिणाम था कि खादी लोगों की पसंदीदा बन गई. लेकिन धीरे-धीरे सरकारी उदासीनता के कारण खादी को जहां होना चाहिए था एक ब्रैंड के रूप में वहां नहीं पहुंच पाई.
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दौसा के खादी मंत्री अनिल शर्मा का कहना है कि खादी ने वर्तमान में अपने आप को बदलते जमाने के साथ ढाला है, जिसकी वजह से खादी के प्रति युवाओं का रूझान बढ़ा है. उन्होंने बताया कि मल्टीनेशनल कंपनियों से मुकाबला करने के लिए खादी में भी नए-नए डिजाइनों को लाया जा रहा है. साथ ही खादी के खुद के शॉपिंग मॉल भी बनाए जा रहे हैं.
युवाओं के खादी के तरफ रूझान को लेकर अनिल शर्मा ने बताया कि कॉलेजों में पढ़ने वाले लड़के, लड़कियों का खादी की तरफ रूझान बढ़ा है. इसका कारण वो खादी में नए जमाने के डिजाइनर कपड़ों को मानते हैं. पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के फेमस फैशन डिजाइनर खादी से जुड़े हैं. अनिल शर्मा बताते हैं कि पिछले साल जब राजस्थान सरकार ने खादी के कपड़े खरीदने पर 50 प्रतिशत की छूट दी तो खादी के कपड़ों की रिकॉर्ड बिक्री हुई.
खादी को राजनेताओं का परिधान और पुराने जमाने के लोगों के पहनावे से जोड़ने की बात पर अनिल शर्मा का तर्क है कि इसके चलते हम खादी को एक छोटे से दायरे में बांध देते हैं. जिससे खादी का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कहा कि अब खादी के लिए काम करने वाले लोग भी समझ गए हैं कि जब तक युवा इसको नहीं अपनाएगा तब तक खादी दुनिया में अपनी पहचान नहीं बना सकेगी. इसके लिए लगातार एग्जीबिशन लगाई जा रही हैं, जिससे खादी की तरफ युवा आकर्षित हो रहे हैं.