चूरू.राजस्थान आस्थाओं और मान्यताओं की धरती है. यहां हर गांव का अपना लोकदेवता है. कई मान्यताओं के आधार पर यकीन करना मुश्किल है. लेकिन फिर भी कुछ ऐसी परंपराएं हैं जिनका निर्वहन सदियों से होता आ रहा है. कुछ ऐसी ही कहानी है चूरू जिले के उडसर गांव की. देखिये ये खास रिपोर्ट...
चूरू का उडसर गांव, जहां नहीं मिलते दो मंजिला मकान राजस्थान के चूरू जिले के इस गांव में आज भी दो मंजिला मकान नहीं बनाए जाते. इसे डर कहें या आस्था. लेकिन ये सच है कि लगभग 700 साल से इस गांव में ग्रामीण अपने घर में दूसरी मंजिल नहीं बनवाते.
इस परंपरा का निर्वहन ये लोग पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं. 21वीं सदी में जहां आज आलीशान कई मंजिला घर बनाए जाते हैं. वहीं इस गांव में आज भी दूसरी मंजिल नहीं बनाया जाना हैरान करता है. आप मानें या न मानें, लेकिन इस गांव के लोग कहते हैं कि यह शापित गांव है.
लोक आस्था ऐसी कि 700 साल से हो रहा निर्वहन वैसे तो राजस्थान का चूरू जिला अपने मौसम के बिगड़ैल मिजाज के कारण सुर्खियों में रहता है. सर्दियों में बर्फ की चादर जमने और गर्मियों पर पारा 50 डिग्री के आस-पास पहुंचना यहां आम बात है. लेकिन इसके साथ ही चूरू जिले से कई ऐतिहासिक और लोक मान्य कहानियां भी जुड़ी हुई हैं.
हमने पता लगाने की कोशिश की कि गांव वाले अपनी जन्मभूमि को आखिर शापित क्यों मानते हैं और ऐसी क्या वजह है कि गांव में कोई भी अपने घर पर दूसरी मंजिल का निर्माण नहीं कराता. ग्रामीणों ने बताया कि पिछले 700 सालों से इस गांव में कोई दो मंजिल का मकान नहीं बना पाया है. जिसने यह कोशिश की उसके साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ.
गोरक्षक भोमिया जी का मंदिर है गांव में बड़े बुजुर्गों से बात करने पर हमें पता चली यहां के लोकदेवता भोमिया जी की कहानी. ग्रामीणों ने हमें यह कहानी सुनाई. वो कहते हैं कि यह घटना आज से करीब 700 साल पहले की है.
लोकदेवता भोमिया जी की पत्नी ने दिया शाप
ग्रामीणों का कहना है कि इस गांव में भोमिया नाम का व्यक्ति था. वह परम गोभक्त था. पास ही के गांव आसपालसर उनका ससुराल था. भोमिया जी की गायों में गहरी आस्था थी. एक समय गांव में कुछ लुटेरे आए और वे गायों को चुराकर ले जाने लगे. इस पर भोमिया जी का उन लुटेरों से भीषण युद्ध हुआ.
युद्ध में गायें तो मुक्त हो गई लेकिन भोमिया जी बुरी तरह घायल हो गए. वे घायल अवस्था में ही अपने ससुराल आ गए और मकान के दूसरी मंजिल पर बने मालिये यानी कमरे में छुप गये. उन्होंने ससुराल वालों को मना किया था कि वे उसके बारे में न बताएं. भोमिया की तलाश में लुटेरे उनके ससुराल पहुंच गए और परिजनों को प्रताड़ित किया. मारपीट को वे सह नहीं पाए और भोमियाजी का पता बता दिया.
गांव-चौपाल में आज भी सुनाई जाती है भोमियाजी की कहानी लुटेरों ने भोमिया जी को कमरे से निकाला और उनका सिर धड़ से अलग कर दिया. कहते हैं कि भोमिया जी अपने सिर को हाथ में लिए हुए उनसे लड़ते रहे और लड़ते-लड़ते अपने गांव की सीमा के पास आ गए. अंत मे भोमिया जी का धड़ उड़सर गांव में गिरा. जहां आज उनका मंदिर है.
इस घटना के बाद भोमिया जी की पत्नी ने गांव वालों को शाप दिया कि घर की दूसरी मंजिल पर अगर किसी ने मकान या मालिया बनाया तो उसका नाश हो जाएगा.
कहा जाता है कि भोमियाजी की पत्नी ने गांव को शाप दिया था लोक आस्था है कि गांव में जिसने भी घर पर दूसरी मंजिल बनाई उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा. उस घटना के बाद भोमियाजी की पत्नी ने भी अपने तप के बल से देह छोड़ दी. कहा जाता है कि तभी से इस गांव में आज तक किसी ने दो मंजिला मकान नही बनाया. ग्रामीणों की लोकदेवता भोमिया जी के प्रति गहरी आस्था है और वे आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी इस शाप का वहन कर रहे हैं.
इस गांव में कोई नहीं बनवाता दो-मंजिला मकान कुल मिलाकर हर मान्यता के पीछे कोई न कोई तर्क होता है. हमारी मान्यताएं हमें अपनी संस्कृति और इतिहास से जोड़ती हैं. इस कहानी की सच्चाई के ऐतिहासिक प्रमाण भले न हों. लेकिन यह सच है कि सदियों से इस गांव ने दूसरी मंजिल नहीं देखी है.