सरदारशहर (चूरू).कहते हैं भगवान ही मुंह मोड़ ले तो इंसान किस दर जाए लेकिन सरदारशहर के वार्ड 40 में रहनेवाले अचूकी देवी से भगवान सहित अपनों ने भी मुंह मोड़ लिया है. वक्त ने ऐसा सितम ढाया कि पहले 3 बेटों में 2 बेटें अकाल काल के गाल में समा गए. वहीं एक बेटा मानसिक रूप से अस्वस्थ है. अब तो अचूकी देवी को अपनी भी सूध नहीं है. ऐसे में वो नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.
अचूकी देवी की कहानी मानवीय संवेदना को झकझोर देती है वो कहते हैं न कि जब इंसान लाचार हो जाता है तो अपने भी साथ छोड़ देते हैं. अचूकी देवी की बेबेसी देखकर सभी के आंख आंसू से भर जाता है. बेबसी ऐसी की मानसिक रूप से कमजोर इस महिला को अपने शरीर की भी सुध नहीं है तो घर और खुद की साफ सफाई तो दूर की बात है. घर में ना खाने को कुछ है और ना पहनने को कोई कपड़ा. साफ सफाई नहीं होने से पूरे घर से बदबू आती है. मखियों और मच्छरों से घर अटा पड़ा है.
बहु के अत्याचार ने की और दुर्गति
बस दो वक्त की रोटी की लगाती हैं ये गुहार पड़ोसियों ने बताया कि सालों से अचुकी देवी नहाई तक नहीं है. कभी-कभार उस महिला की दशा पर दया खाकर पड़ोसी खाने को दे देते हैं. पड़ोसियों का कहना है कि एक बेटे की मौत होने के बाद उसकी पत्नी अचूकी देवी को परेशान करती है. वह उनसे जमीन हड़पना चाहती है. इसलिए वह इस बुजुर्ग महिला के साथ मारपीट भी करती है.
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कोई मदद करने के लिए आगे आता है तो उसकी मदद नहीं करने देती है. इस बेबस महिला का कहना है कि बाबूलाल सोनी ने बताया कि अचूकी देवी की बहू ने शौचालय के भी ताला लगा रखा. जिसके चलते वे घर के अंदर खुले में ही यहां वहां शौच करती है.
सामाजिक कार्यकर्ता ने की घर की सफाई
सामाजिक कार्यकर्ता मोनू मिश्रा की टीम को जब अचूकी देवी की हालत का पता चला तो मोनू मिश्रा की टीम ने उनके घर की साफ सफाई की. इस दौरान उनकी टीम द्वारा राशन पानी की भी व्यवस्था भी की गई. मोनू मिश्रा ने बताया कि जब हम उनके घर गए तो इतनी भीषण बदबू आ रही थी कि वहा खड़ा रहना तक मुश्किल था लेकिन हमने जैसे-तैसे कर उनके घर की साफ सफाई की और उनके लिए रजाई की व्यवस्था भी की.
घर में बिजली भी नहीं
इस बेबस महिला कूप अंधेरे में जीवन जीने को मजबूर है. घर में बिजली कनेक्शन नहीं है. घर पर गैस कनेक्शन नहीं होने के कारण भी उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है वह जैसे तैसे चूल्हा जलाकर जीवन बसर करती है. अचूकी देवी आने जाने वालों से निहारती आंखें बस सबसे कुछ नहीं सिर्फ दो वक्त का खाना मांगती है. ना ही इन्हें कोई पेंशन की सुविधा मिल रही है. ऐसे में अचूकी देवी के जानने वालों का कहना है कि बस इन्हें सरकारी सहायता मिल जाए.
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जिस महिला ने अपने दो जवान बेटे को खोया हो, होश साथ न दे तो ऐसे में अपनों का साथ और सहारा जरूरी हो जाता है. लेकिन असंवेदनशीलता की हद यह है कि जिस महिला की दुर्दशा देखकर लोगों की आंखे भर जाती है, उसकी बहु का दिल मानो पत्थर का हो, जो मां समान सास के लिए पसीज नहीं रहा है. ऐसे में सरकारी और सामाजिक संस्था की मदद से ही इस महिला को अत्याचार और बेबसी की जिंदगी से बाहर निकाला जा सकता है.