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चूरू: झुग्गियों में रहने वाले बोले- कोरोना से नहीं भूख से मर जाएंगे साहब... - hindi news

चूरू जिला मुख्यालय पर प्रसाशन के राशन वितरण की पोल खुलती नजर आ रही है. बता दें कि सैकड़ों झुग्गियों में रहने वाले परिवार अनाज के दाने दाने के मोहताज हैं. जिले के गाजसर गांव में रहने वाले घुमक्कड़ जाती के सैकड़ों परिवारों को पिछले 15 दिनों से राशन नहीं मिला है. लोगों का कहना है कि कोरोना से नहीं भूख से मर जाएंगे साहब.

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झुग्गियों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को नहीं मिल रहा खाना

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Published : Apr 14, 2020, 9:57 PM IST

चूरू. ये पेट की आग जनाब बहुत कुछ करवाती है, इंसान को जाने क्या से क्या बनाती है, कभी एक बच्चे से खिलौने बिकवाती है तो कभी इस देश के भावी भविष्य से भीख मंगवाती है. ये पेट की आग जनाब बहुत कुछ करवाती है, इंसान को जाने क्या से क्या बनाती हैं. उक्त पंक्तियां आज के परिपेक्ष्य में बिल्कुल सही और सटीक बैठती हैं. कोरोना की इस महामारी ने ना सिर्फ लॉकडाउन में गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार छीना है. बल्कि तमाम मेहनतकश मजदूरों के सामने दो वक्त की रोटी का भी संकट खड़ा कर दिया है.

झुग्गियों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों को नहीं मिल रहा खाना
जिला मुख्यालय के निकटवर्ती गाजसर गांव में झुग्गियों में रहने वाले लोगों की पीड़ा और इनके हालात काफी दयनीय है. पिछले 15 दिनों से यहां रहने वाले इन सैकड़ों परिवारों को अनाज का एक दाना भी नसीब नहीं हुआ है. यहां पत्थर दिल भी उस वक्त पिघल जाए जब वह सूखे हलक दूध के लिए एक मासूम बच्चे को रोता हुआ देख लें. पूरे मामले में जिला प्रसाशन की राशन वितरण प्रणाली पर भी यहां सवालिया निशान खड़ा होता है कि आखिरकार जिम्मेदार अधिकारी क्यो ऐसे भयावह हालातों में भी शहर का जायजा नहीं ले रहे हैं.

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लोगों का कहना है कि साहब कोरोना से तो नहीं बल्कि भूख से सच में मर जाएंगे. बता दें कि दिनभर मजदूरी करने के बाद जिनके घर शाम को चूल्हा जलता था आज इन घुमक्कड़ जाती के घरों के चूल्हे बिना राशन बिना अनाज सुने पड़े है.

सैकड़ों परिवारों को पिछले 15 दिनों से नहीं मिला राशन

गौरतलब है कि कोरोना वायर के केस लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. जिसके चलते पूरे देश में लॉकडाउन की अवधि 3 मई तक बढ़ा दी गई है. इसी के साथ गरीब और असाह लोगों पर भी खाने पीने का संकट गहरा गया है. हालांकि प्रशासन अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहा है कि कोई भी भूखा ना सोए, लेकिन इस गांवों की स्थिती तो कुछ और ही बयां कर रही है.

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