चित्तौड़गढ़.बृजबाला चित्तौड़गढ़ जिले के सावा कस्बे की रहने वाली हैं, जिन्हें विषैले सांप ने कई बार काटा है. प्रारंभ में उनपर जहर का गंभीर असर भी रहा, लेकिन धीरे-धीरे कर उनके शरीर में खुद ही सांप के जहर के खिलाफ एंटीबॉडी डेवलप हो गई. क्योंकि एक साल में तीन से चार बार तक सांप के काटने की घटनाएं हो रही थीं. बाद में हालत यह हो गई कि जब भी सांप काटता, घर-परिवार के लोगों ने भी महज वहम मानकर उन घटनाओं को गंभीरता से लेना बंद कर दिया.
धीरे-धीरे कर महिला के शरीर में इतना जहर फैल गया कि अंतिम बार तो खुद सांप ही चलने-फिरने योग्य नहीं रहा और सुध बुध खो बैठा. हालांकि, उस सांप को मारने के बाद महिला को डसने की शिकायत खत्म हो गई, लेकिन आज भी लोग सर्प दंश को लेकर सिहर उठते हैं.
महिला एवं बाल कल्याण विभाग में बतौर ग्राम साथिन कार्यरत 45 वर्षीय बृजबाला का मकान अब तो पक्का है, लेकिन 1993 के दौरान परिवार सहित कच्चे मकान में ही रह रही थीं. अगस्त 1993 में कच्चे रसोई घर में उसे किसी जहरीले जानवर ने डंक मार दिया और देखते ही देखते उस पर बेहोशी छा गई. पति कृष्ण दत्त तिवारी सहित परिवार के लोग घबरा गए और उन्हें तत्काल चित्तौड़गढ़ जिला चिकित्सालय लाया गया. जहां करीब 17 दिन तक उपचार के बाद वह ठीक हो पाईं.
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अगले साल अगस्त में ही फिर वह सर्पदंश का शिकार हो गईं और फिर हॉस्पिटल ले जाया गया. उसके बाद तो यह सिलसिला कभी खत्म नहीं हुआ. कभी मकान तो कभी नोहरा या फिर खेत में साल में दो से तीन बार सर्पदंश की घटनाओं से जूझती रहीं.
धीरे-धीरे कम हो गया जहर का असर...
हालांकि, सांप के काटने की घटनाएं होती रहीं, लेकिन वर्ष 2000 के बाद पहले की तरह आंखों के आगे अंधेरा छाना, जी घबराना, बेहोशी छाना आदि कम होता गया. मजेदार बात यह है कि बाद में जब भी कभी सांप काटने की घटना सामने आती, परिवार के लोग भी उसे गंभीरता से नहीं लेते और घंटों या फिर दूसरे दिन बृजबाला को हॉस्पिटल ले जाते.