चित्तौड़गढ़. सरकार भले ही किसी को भूखा नहीं सोने देने की बात कह रही है और इसके लिए इंतजाम करने की बात कह रही है, लेकिन जिस सिस्टम के जरिए इंतजाम किए जा रहे हैं उसको दीमक लग चुकी है. इस सरकारी सिस्टम में मानवीय संवेदना है जो खत्म हो चुकी है. ऐसी ही तस्वीर चित्तौड़गढ़ में सामने आई है, जहां घरों की ओर पैदल लौट रहे मजबूर मजदूरों को शरण मांगने पर लाठियां मिली. इन्हें शरण देने की बात कही, उस जगह पर इंतजामों के नाम पर ताले लगे मिले. ऐसे में इस तरह के हालात सरकार की मंशा पर पानी फिर रहा है.
जानकारी के अनुसार प्रदेश की सरकार लगातार यह दावे कर रही है कि लॉकडाउन में किसी को भूखा नहीं सोने दिया जाएगा. किसी को लॉकडाउन के दौरान रहने व खाने की समस्या नहीं होगी, लेकिन प्रशासन के रवैया के चलते सरकार की मंशा पर पानी फिरता दिख रहा है. लॉकडाउन के बाद अहमदाबाद में काम कर रहे उत्तरप्रदेश के बरेली के लोगों को उनके मालिक ने काम से निकाल दिया.
साप्ताहिक आधार पर काम करने वाले इन लोगों ने अपना पैसा परिवार वाले खातों में जमा करा दिया. इसी दौरान लॉकडाउन हो गया और यह जैसे-तैसे गुजरात से राजस्थान सीमा में आ गए और जब यह सीमाओं में पहुंचे तो सरकारों ने बॉर्डर सील के आदेश दे दिए. इसका परिणाम हुआ कि अब यह लोग चितौड़गढ़ जिले में फंस कर रह गए हैं. दो दिन पहले इन लोगों को बस्सी से ले जाकर झांतलामाता में छोड़ा गया, लेकिन वहां कतिपय लोगों ने उन्हें रहने नहीं दिया.
जैसे-तैसे पांडोली गांव के बाहर इन्होंने रात गुजारी, लेकिन बुधवार सुबह पुलिस मौके पर पहुंच गई और लाठियां भाज कर इन्हें वहां से भगा दिया. इनकी सुनवाई करने न तो कोई प्रशासनिक अधिकारी आया ना ही कोई जनप्रतिनिधि. यह लोग पैदल-पैदल फिर वहां से रवाना हुए जहां गंगरार में इन्हें खाना नसीब हुआ और फिर वहां से पैदल 40 किलोमीटर का सफर तय कर पुनः बस्सी पहुंचे.