चित्तौड़गढ़. पर्यटन के साथ-साथ देसी गुड़ ने भी चित्तौड़गढ़ को एक नई पहचान दी है. सर्दी आने के साथ ही गुड़ बनाने की चरखियां भी तेजी से चलने लगी है. जिले के इस गुड़ की सबसे बड़ी विशेषता है इसमें केमिकल का न होना. इस गुड़ में केमिकल के स्थान पर भिंडी के पानी का उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि इस गुड़ की डिमांड बढ़ी है. दिल्ली-मुंबई के लोग भी इसे मंगवाते है और इस मिठास का चस्का लेते हैं.
रोजाना 10 टन गुड़ का निर्माण : जानकारी के मुताबिक जिले में प्रतिदिन करीब 10 टन गुड़ का निर्माण होता है. गुड़ बनाने का यह काम होली तक चलता है. बड़े पैमाने पर देसी गुड़ बनाने के पीछे चित्तौड़गढ़ के आसपास गन्ने की खेती है. इस कारण कच्चे माल की कमी नहीं आती और चरखी दिन भर चलती रहती है. गुड़ बनाने का यह काम मुख्यतः राष्ट्रीय राजमार्गों पर ही होता है. इस कारण रोड से गुजरने वाले लोग भी देसी गुड़ की महक को सूंघकर अपने कदम यहां रोकने से नहीं रोक पाते और गुड़ खरीदे बिना नहीं रह पाते. इन इलाकों में गुड़ की खरीद बड़े लेवल पर होती है.
लोकल लोग ही बनाते हैं गुड़ : गुड़ बनाने का काम करने वाले देवरी गांव के पूरणमल डांगी बताता है कि उनके दादा ने गुड़ बनाने का काम शुरू किया था, जिसे उसके पिता ने भी बरकरार रखा और अब वह भी इस काम को हैंडल कर रहा है. उसने बताया कि पहले यहां गुड़ बनाने वाले कारीगर बाहरी क्षेत्रों से बुलाने पड़ते थे, लेकिन समय के साथ लोकल लोगों को ट्रेनिंग दी गई. बाहर से आए कारीगरों के साथ उन्हें काम सिखाया गया. आज स्थानीय लोगों से ही गुड़ बनाने का काम करवाया जा रहा है. डांगी के अनुसार पानी से दूर रखो तो यह गुड़ कभी खराब नहीं होता और लंबे समय तक चलता रहता है.