चित्तौड़गढ़. जिले की वीर भूमि राजा-महाराजाओं की नगरी रही है. पुराने समय में जलापूर्ति के लिए जगह-जगह कुंड और बावड़ियों का निर्माण करवाया था. ऐसे में सालों तक ये पेयजल आपूर्ति के स्त्रोत रहे हैं. बाद में पाइप लाइन से आपूर्ति का समय आया तो पेयजल आपूर्ति के लिए खदान और घोसुण्डा बांध पर आश्रित होकर रह गए हैं. ऐसे में इस साल घोसुण्डा बांध सहित अन्य जलाशय रीते रह गए, जिससे चित्तौड़गढ़ शहर में पेयजल संकट गहरा गया है. अभी से ही पानी को लेकर खींचतान शुरू हो गई है. वहीं, प्राचीन कुंड और बावड़ियों की सुध नहीं ली है, जिनसे जिला मुख्यालय के कई मोहल्लों में पेयजल आपूर्ति की संभावना बन सकती है.
जानकारी के अनुसार देश-विदेश से आने वाले हजारों की संख्या में पर्यटक चित्तौड़गढ़ इस वीर भूमि को नमन करने के लिए आते हैं. यहां पर ऐतिहासिक और प्राचीन धरोहर को देखकर अभिभूत भी होते हैं, लेकिन चित्तौड़गढ़ जिला प्रशासन इन धरोहरों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दे रहा है. इसके चलते यह धरोहर है नष्ट होने के कगार पर पहुंच गई है.
पढ़ें-चित्तौड़गढ़ में 4, निम्बाहेड़ा में 35 कौओं की मौत...लेकिन बर्ड फ्लू के लक्षण नहीं
प्राचीन शहर में पुराने समय में कई कुंड और बावड़ियों का निर्माण कराया था, जो पेयजल आपूर्ति के स्त्रोत थे. चित्तौड़गढ़ शहर में लगभग 1 दर्जन से अधिक प्राचीन बावडियों और कुंड है जो कि कई सालों से चित्तौड़गढ़ शहरवासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करते थे. आज ये सभी प्रशासन की उदासीनता के शिकार के चलते कचरा पात्र बनने के साथ हीं ढहने के कगार पर है.
प्राचीन काल में जल स्रोतों के लिए कई ऐसी बावड़ियों और कुंड का निर्माण किया था, जिनकी संख्या वर्तमान में शहरी क्षेत्र में एक दर्जन से कहीं अधिक है. कभी शहरवासियों को इनसे पेयजल सुलभता से उपलब्ध हुआ करता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से स्थानीय राजनीति भी इन बावड़ियों पर भारी पड़ती भी दिखाई दी. नतीजा ये हुआ कि ये प्राचीन बावड़िया अब आमजन के लिए कचरा पात्र बन कर रही गई है और इनकी हालत अब जर्जर अवस्था में पहुंच गई है. इसके लिए जिला प्रशासन पर आमजन दोनों ही जिम्मेदार है, जिन्होंने इन प्राचीन धरोहरों की कीमत नहीं समझी और अब जबकि आने वाले समय में शहर में पेयजल का संकट गहराने की पूरी संभावना है और तब शायद जिला प्रशासन और आमजन को इन प्राचीन धरोहरों की याद अवश्य आएगी.