चित्तौड़गढ़.मेवाड़की पन्नाधाय के बलिदान और त्याग की याद में पैतृक गांव पांडोली में उनका पैनोरमा बनाया जाएगा. शुक्रवार को राज्य सरकार (Pannadhai of Mewar) ने इसके लिए करीब 4 करोड़ रुपए की वित्तीय और प्रशासनिक मंजूरी प्रदान कर दी है. इसके बाद से ही पांडोली सहित आसपास के गांव में गुर्जर समाज के लोगों में खुशी की लहर है. सूचना मिलते ही पांडोली के लोगों ने नाच-गाकर और आतिशबाजी कर जश्न मनाया. लोग मां पन्नाधाय के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नारे लगाते रहे.
ग्राम पंचायत पांडोली के उपसरपंच गोरी लाल गुर्जर ने बताया कि गुर्जर समाज सहित विभिन्न समाजों के लोगों (Panorama of Pannadhai will be Built in Pandoli) की ओर से पांडोली में मां पन्नाधाय के पैनोरमा के निर्माण की लंबे समय से मांग की जा रही थी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने गत कार्यकाल में आश्वासन भी दिया था जिसे पूरा करते हुए सरकार ने 4 करोड़ रुपए की वित्तीय और प्रशासनिक मंजूरी प्रदान कर दी है.
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ग्रामीणों की इस मांग को धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह जाड़ावत ने भी सरकार के समक्ष उठाए थे. गत महीने चित्तौड़गढ़ प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समक्ष जाड़ावत ने जब इस मांग को रखा तो मुख्यमंत्री ने प्राधिकरण को आगे की कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे. इसी क्रम में प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी टीकम चंद बोहरा पिछले कुछ दिनों में कई बार चित्तौड़गढ़ पहुंचे और आवश्यक जमीन का चयन करते हुए अपनी मुहर लगा दी.
यह रहा पन्नाधाय का इतिहास : पन्नाधाय का जन्म (History of Pannadhai) जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर कपासन रोड स्थित माताजी की पांडोली गांव में हुआ था. उनका पूरा नाम पन्ना गुजरी था. लेकिन महाराणा उदय सिंह को पालने के लिए इन्हें धाय मां की उपाधि दी गई. इनके पिता का नाम हरचंद हाकला था, जबकि पति का नाम सूरजमल चौहान था. पन्नाधाय महाराणा संग्राम सिंह शासन के समय धायमाता के रूप में रहती थी. चित्तौड़गढ़ में हुए रानी कर्मावती के जौहर के समय वो महारानी की प्रमुख सेविका के रूप में कार्य करती थी. रानी ने जौहर में प्रवेश करने से पूर्व अपने छोटे पुत्र उदय सिंह की सुरक्षा का दायित्व पन्नाधाय के हाथों में सौंप दिया. उन्हें पन्नाधाय पर पूरा विश्वास था जानती थीं कि वो वचन की खातिर कुछ भी कर सकती हैं.
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इस बीच कुछ ऐसा हुआ जो अप्रत्याशित तो नहीं लेकिन अविश्वसनीय था. दरअसल, चित्तौड़ किले पर दासी पुत्र बनवीर अपना अधिकार जमाना चाहता था. उसने अधिकार कर भी लिया. अधिकार जमाने के बावजूद भी बनवीर के मन में उदय सिंह को लेकर डर रहता था. बनवीर को सांगा के एकमात्र उत्तराधिकारी बालक उदय सिंह का डर था. उसे फिक्र थी कि कहीं वो सिंहासन का हकदार न बन जाए. इस पर उसने बालक उदय की हत्या करने का मन बनाया ताकि सांगा का कोई भी वंशज जीवित न रहे. बनवीर के इस बदनियती का आभास पन्नाधाय को हो गया था.
एक दिन मौका देखकर जब बनवीर ने बालक उदयसिंह की हत्या करने के लिए महल में प्रवेश किया तब पन्नाधाय ने अपने वचन को निभाते उदय सिंह की जगह अपने पुत्र चंदन को सुला दिया. वहीं बालक उदय सिंह को फूलों की टोकरी के माध्यम से चित्तौड़ के किले के बाहर ले कर चली गई. बनवीर ने उसके पुत्र की निर्मम हत्या कर दी. पन्नाधाय उदय सिंह को कुंभलगढ़ ले कर चली गईं. जहां उनका पालन पोषण किया. उदय सिंह थोड़े बड़े हुए तो युद्ध में बनवीर की सेना को पराजित कर फिर चित्तौड़ के लिए पर अपना अधिकार कायम किया.