चित्तौड़गढ़. केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020-21 की अफीम नीति घोषित किए जाने के साथ ही अफीम किसानों का रोष भी सामने आने लगा है. अफीम नीति की घोषणा के साथ ही, जहां भाजपा नेताओं ने इस अफीम नीति को किसानों की हितेषी नीति बताया और मार्फिन औसत 4.2 रखे जाने का स्वागत किया है. वहीं अफीम की खेती से जुड़े किसानों ने इस नीति को लेकर आक्रोश जाहिर किया है.
इस संबंध में शुक्रवार को भारतीय अफीम किसान विकास समिति ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के नाम जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर अफीम नीति में आवश्यक परिवर्तन करने की मांग की है. जानकारी के अनुसार अफीम किसान विकास समिति के बैनर तले धरने का आह्वान किया गया था. कलक्ट्रेट पर पहुंचे किसानों ने अफीम नीति के संबंध में कहा कि अफीम के किसान चित्तौड़गढ़ में 1998 से लगातार मांग कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने 1998 से 2020 तक काटे गए सभी पट्टे बहाल करने की मांग की है.
किसानों का कहना है कि एक तरफ सरकार मेक इन इंडिया का दावा करती है, लेकिन मार्फिन और दवाइयां विदेश से आयात करती है, जो मेक इन इंडिया के दावे और मेड बाई किसान के दावे की सार्थकता में संशय पैदा करता है. अफीम किसान विकास समिति के संरक्षक मांगीलाल मेघवाल ने बताया कि भारत सरकार आस्ट्रेलिया और तुर्की से डोडा-पोस्त का आयात कर रही है, जबकि देश का किसान यहां इसकी पैदावार की लगातार मांग कर रहा है.
किसानों का कहना है कि नई अफीम नीति के कारण अगले साल आधे से ज्यादा किसानों के पट्टे कट जाएंगे. इस मौके पर पहुंचे किसानों का कहना था कि केन्द्र सरकार सदैव मार्फिन बढ़ाने का दबाव बनाती रही है और इस वर्ष भी अफीम नीति में 5.9 की औसत से अफीम दिए जाने की चेतावनी दी है. वहीं प्रति हेक्टयर औसत बढ़ाने का भी दबाव है. ऐसे में औसत बढ़ाने के फेर में किसान अत्यधिक मात्रा में यूरिया और पेस्टीसाइट का उपयोग करता है, जिसस मार्फिन की मात्रा कम हो जाती है. यदि सरकार औसत में कमी लाए, तो किसान जैविक खेती करके मार्फिन की मात्रा बढ़ा सकते है.
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अफीम किसान विकास समिति के किसानों ने मांग की है कि 1998 से कटे पट्टे बहाल किए जाए. वहीं प्रति किलोग्राम अफीम का मूल्य 25 हजार रुपए किया जाए. जिससे किसानों को उनकी मेहनत और खून पसीने की कमाई मिल सके. उन्होंने बढ़ाए गए मार्फिन के नियम को समाप्त करने, अफीम फैक्ट्री का उन्नयन कर, विदेशी निर्यात बढ़ाने और एसीबी द्वारा पिछले दिनों पकड़े गए नारकोटिक्स अधिकारियों का नारको टेस्ट कर किसानों को न्याय दिलाने की मांग की है. उनका कहना है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि भी अधिकारियों के दबाव में है. उन्होंने कहा कि यदि अफीम नीति में परिवर्तन नहीं किया, तो अफीम किसान आन्दोलन को बाध्य होंगे.
खेतों को तैयार में जुटे किसान
वहीं कपासन में पिछले लंबे समय से किसान नई अफीम नीति का इंतजार कर रहे थे. ऐसे में कैन्द्रीय वित मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा अफीम नीति की घोषणा करने बाद से ही किसान खेतों को तैयार करने में जुट गए है. हालांकि नई नीति में किसानों को किसी तरह की कोई राहत का ऐलान नहीं किया गया है.
राहत के नाम पर किसानों को मात्र 4.2 किलो प्रति हेक्टेयर औसत मार्फिन देने वाले पट्टे देने की बात कही गई है. वित्त मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 -21 के लिए जारी की गई अफीम नीति में लाईसेंस की पात्रता के लिए कुछ बिंदु रखे गए है. जिसमें विभागीय देखरेख में 2017-18, 2018-19 और 2019 -20 के दौरान सम्पूर्ण फसल की जुताई की हो और उससे पूर्व 2016-17 में जुताई नहीं की थी, तो उसका पट्टा रहेगा.
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इसी तरह ऐसे किसान जिनका एनडीपीएस एक्ट के तहत अदालत में अपराधिक मामला होने पर लाईसेंस रद्द कर दिया गया था, लेकिन वह बरी हो गए हो तो 31 जुलाई 2020 तक के अंतिम आदेश वाले किसानों को भी पट्टा दिया जाएगा. नीति घोषित होने के साथ ही नारकोटिक्स विभागद्वारा किसानों की सूची तैयार करने के साथ ही अफीम लाईसेंस देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.