बस्सी (चित्तौड़गढ़). 'मां की रसोई' यह शब्द सुनते ही जहन में मां के हाथों का बना लजीज खाना याद आ जाता है और मुंह में वही स्वाद. ऐसा ही भोजन निर्धन और निराश्रित लोगों को मिले तो इससे अच्छी और क्या बात होगी.
आपको बता दे की मां की रसोई में बना भोजन चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर स्थित बस्सी गांव में गरीब और निराश्रित लोगों को मिल रहा है. यहां एक व्यक्ति करीब 2 सालों से रोज गरीबों के लिए निशुल्क भोजन उपलब्ध करवाता है. साथ ही अपनी रसोई का नाम उन्होंने 'मां की रसोई' रखा है. खास बात यह है कि यहां मिलने वाला भोजन घर पर बनाया जाता है. अमूमन हम बड़े तबके के लोगों को किसी दिन विशेष पर दान करते हुए या खाना खिलाते हुए देखते या सुनते है. लेकिन जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर स्थित बस्सी में एक व्यक्ति ने दान करने की परिभाषा को बदलते हुए रोज गरीबों को खाना खिलाने का कार्य कर रहा है.
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चित्तौड़गढ़ में सर्राफा व्यवसायी और बस्सी निवासी शेखर सोनी लगातार दो सालों से असहाय लोगों को निःशुल्क भोजन करवा रहे है. वो भी अपने घर की रसोई का बना शुद्ध खाना. उन्होंने अपनी मां के कहने पर अपनी रसोई का नाम 'मां की रसोई' रखा. शेखर सोनी ने बताया कि जिला मुख्यालय पर उनकी ज्वेलर्स की दुकान है लेकिन वे बस्सी में रहते है. उन्होंने बताया कि 2 साल पहले एक दिन उन्होंने बस्सी में दो-तीन लोगों को देखा था जो मानसिक रूप से विक्षिप्त थे. सभी लोग कई दिन से भूखे थे. ये लोग कमा कर खाने में भी असमर्थ थे. तभी से मन में आया कि ऐसे कई लोग है जो कमाने में असमर्थ है और कई लोग ऐसे है जो महंगाई के कारण मजबूरी में भूखे रहते है. ऐसे लोगों को खाना खिलाना एक धर्म का कार्य होगा. यह सोचने के बाद परिवार से चर्चा कर करीब दो साल पहले अनंत चतुर्दशी के दिन से मां की रसोई की शुरुआत की गई.