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SPECIAL : मनरेगा ने प्रवासी मजदूरों का बदला मन...गांव में ही जम गए मजदूर, रोजी-रोटी का आधार बनी योजना

मनरेगा के तहत चित्तौड़गढ़ जिले में एक ट्रेंड देखने को मिला. यहां कोरोना काल के दौरान आए प्रवासी मजदूर महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में मजदूरी मिलने के कारण अब अपने गांव में ही रोजी-रोटी पाकर संतुष्ट हैं. आंकड़े कहते हैं कि प्रवासी मजदूर अब बाहर के शहरों में जाने से कतरा रहे हैं. जिले में मनरेगा के तहत श्रम नियोजन लगातार बढ़ रहा है.

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ग्रामीण इलाकों के लिए संबल बनी मनरेगा योजना

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Published : Jan 9, 2021, 5:48 PM IST

चित्तौड़गढ़. कोरोना महामारी का खौफ लोगों पर अब भी कायम है. हालांकि सरकार की ओर से वैक्सीनेशन की तैयारियां की जा रही हैं, स्कूल कॉलेज खोलने की घोषणा हो चुकी है. प्रदेश में बेरोजगारी को देखते हुए रियायतों का दौर भी चल रहा है. इसके बाद भी कोरोना का डर लोगों के दिलों दिमाग से नहीं उतर पाया है.

मनरेगा योजना ने ग्रामीण भारत को बनाया आत्मनिर्भर..

कोरोना संक्रमण का खतरा फैला तो सरकार ने लॉकडाउन लगा दिया था, उसके बाद हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने अपने घरों को लौटे. अब तो जनजीवन तेजी से सामान्य होता जा रहा है, लेकिन चित्तौड़गढ़ में मनरेगा में मजदूरी पाने वाले लोगों के आंकड़ों को देखें तो यह तथ्य सामने आता है कि लोग फिर से मजदूरी के लिए बाहर जाने से कतराते दिख रहे हैं.

फिर से घर छोड़ने की बजाए लोग छोटे-मोटे धंधों के अलावा मनरेगा में ही रोजी रोटी की तलाश कर रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि नरेगा पर श्रम नियोजन लगातार बढ़ रहा है और यह संख्या अगले 2 महीनों में और भी बढ़ने की संभावना है. क्योंकि रबी की फसल कटने वाली है. फसल घर पहुंचने के बाद मनरेगा की ओर लोगों का रुझान तेजी से बढ़ने के आसार हैं.

पढ़ें- SPECIAL: बेरोजगारों के लिए वरदान बनी मनरेगा...4 लाख श्रमिकों को मिला रोजगार

मस्टररोल में उपस्थित श्रमिकों की तादाद ठीक

ईटीवी भारत की टीम ने अनलॉक के बाद मनरेगा के तहत काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है या उस में गिरावट आई है. इसकी हकीकत जानने के लिए कुछ साइटों पर पहुंच कर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की. शहर के निकट आने वाली देवरी ग्राम पंचायत के कुछ नरेगा कार्य का जायजा लिया तो वहां श्रमिकों की संख्या बढ़ने की बात सामने आई. इस पंचायत में प्रतिदिन 200 से अधिक लोगों को रोजगार दिया जा रहा है. मेड बंदी की एक साइट पर 42 महिला मजदूर काम करती दिखी जबकि इस काम के लिए 44 श्रमिकों का मस्टरोल जारी किया गया. अर्थात केवल दो श्रमिक नहीं पहुंचे. अन्य कार्यों पर भी मजदूरों की संख्या मस्टरोल के मुकाबले पाई गई.

बढ़ रही है मनरेगा मजदूरों की संख्या

आंकड़े बताते हैं कि मनरेगा पर अनुपस्थित लोगों की संख्या का ग्राफ घटने के साथ मजदूरों की संख्या बढ़ रही है अर्थात लोग अब भी कोरोना के डर से उबर नहीं पाए हैं. लोगों की यह मानसिकता बन गई है कि भले ही कम खाना पड़े लेकिन खाना घर पर ही है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण लॉकडाउन के दौरान अन्य शहरों में आई परेशानी और येन केन प्रकारेण घर पहुंचने के दरमियान आई परेशानियों की यादें अभी भी उनके मन में तरोताजा है.

मनरेगा से प्रवासी मजदूरों को मिला संबल..

कोरोना एक संक्रामक रोग है और कभी भी अपने पुराने रूप में आ सकता है. उसके बाद के हालातों को देखते हुए लोग बाहर जाने की बजाए अब अपने ही घरों पर रहना बेहतर मान रहे हैं. मनरेगा के आंकड़ों पर नजर डालें तो अनलॉक के महीनों बाद भी ग्रामीण क्षेत्र से लोग अन्य शहरों की ओर जाने से बच रहे हैं.

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मनरेगा श्रम नियोजन के आंकड़े, जिला परिषद चित्तौड़गढ़

मनरेगा श्रम नियोजन के आंकड़े, जिला परिषद चित्तौड़गढ़

श्रमिकों की संख्या को देखते हुए अंदाजा लगा सकता है कि लोग फिर से रोजगार की तलाश में बाहर जाने के स्थान पर स्थानीय स्तर पर ही काम करने को तवज्जो दे रहे हैं.

इस बारे में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ज्ञानमल खटीक कहते हैं कि हालांकि प्रवासी मजदूरों के लौटने का श्रम नियोजन पर आंशिक तौर पर असर पड़ा है, लेकिन स्थानीय लोगों के साथ हमारा लक्ष्य आने वाले दिनों में प्रतिदिन दो लाख लोगों का श्रम नियोजन है. जिले में 182000 एक्टिव जॉब कार्ड है. यदि हर जॉब कार्ड से एक व्यक्ति को भी रोजगार दिया जा सके तो वैसे ही पौने दो लाख लोगों का श्रम नियोजन हो रहा है.

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