चित्तौड़गढ़.कोरोना महामारी के कारण लंबे समय से धार्मिकस्थल बंद हैं. सावन माह में भी पूजा-अर्चना के लिए मंंदिर नहीं खोले गए थे. भक्त भी घरों पर ही रहकर पूजा-पाठ कर रहे हैं. ऐसे में 12 अगस्त को जन्माष्टमी पर चित्तौड़गढ़ के प्रख्यात कृष्णधाम श्री सांवलियाजी मंदिर में जलझूलनी एकादशी पर लगने वाले मेले पर भी संशय है. श्रद्धालु भी संक्रमण के खतरे को देखते हुए भीड़भाड़ में जाने से बच रहे हैं.
सादगी से मनेगा कान्हा का जन्मोत्सव कोरोना संक्रमण को देखते हुए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के साथ ही चित्तौड़गढ़ जिले में सभी धार्मिक स्थल बंद कर दिए गए हैं. ऐसे में राजस्थान ही नहीं, देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शुमार श्री सांवलियाजी मंदिर के कपाट भी भक्तों के लिए बंद कर दिए गए हैं. लगभग पांच माह से श्रद्धालु यहां दर्शन नहीं कर पा रहे हैं. सावन में सोमवार के बाद अब जन्माष्टमी पर भी कोरोना वायरस का असर दिखने वाला है. प्रशासन ने कोरोना के खतरे को देखते हुए आगामी 30 अगस्त तक सभी धार्मिकस्थलों को बंद करने का आदेश दिया है.
मंदिरों में सजाईं जाती थीं झांकियां नहीं सजाई जाएंगी झांकियां
ऐसे में 12 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर इस बार झांकियां नहीं सजाई जाएगी. जन्माष्टमी पर सबसे बड़ा आयोजन चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया स्थित कृष्णधाम श्री सांवलिया सेठ के दरबार में होता है, लेकिन इस बार यहां भी सन्नाटा रहेगा. जन्माष्टमी पर भगवान का जन्म इसबार बेहद सादगी से होगा. मंदिरों में भक्तों की भीड़ नहीं होगी सिर्फ महंत एवं पुजारी ही आरती करेंगे. सामान्यतया जन्माष्टमी पर जिले के विभिन्न स्थानों पर हर साल झांकियां सजाई जातीं थीं जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती थी. मध्य रात्रि में भगवान कृष्ण के जन्म के बाद प्रसाद का वितरण होता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा.
मंदिरों में होती थी आकर्षक सजावट हर वर्ष सांवलियाजी में मेला लगता है जहां करीब डेढ़ से दो लाख तक श्रद्धालु आते हैं. जलझूलनी एकादशी का मेला भी लगता था लेकिन इस बार नहीं लगेगा. हर साल भगवान के दर्शन के साथ बच्चों से लेकर बड़े तक मेले का आनंद लेते हैं लेकिन इस बार यह मेला नहीं लगाया जाएगा.
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जन्माष्टमी पर सांवलिया सेठ में होते हैं विविध आयोजन
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान श्री सांवलिया सेठ के मंदिर में कई आयोजन होते हैं. भगवान का विशेष शृंगार के साथ स्वर्ण वागा धारण कराया जाता है. पूरे दिन दर्शन के लिए भीड़ लगी रहती है. रात 12 बजे विशेष आरती की जाती है. पंजीरी का प्रसाद बना कर विशेष तौर पर श्रद्धालुों के बांटा जाता है. साथ ही कुछ वर्षों से यहां केक काटने की परंपरा भी शुरू हो गई है लेकिन इस बार यह नहीं हो पाएगी. हर साल जन्माष्टमी पर पूरा मंदिर परिसर रोशनी में नहाया रहता है. परिसर में गुब्बारों और आर्टिफीशियल फूलों से विशेष सजावट की जाती है लेकिन सादगी से भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाएगा.
हर साल मंदिर में उमड़ती थी भीड़ यह भी पढ़ेंःजयपुर एयरपोर्ट पर नहीं बढ़ रहा यात्री भार...4 फ्लाइटें रद्द
सबसे बड़ा आयोजन तीन दिवसीय मेला
भगवान श्री सांवलियाजी मंदिर में सबसे बड़ा आयोजन जलझूलनी एकादशी का तीन दिवसीय मेला होता है जो भादवा महीने में आता है. यह मेला इस वर्ष अगस्त माह के आखरी दिनों में हैं. वैसे तो यह मेला वर्षों से आयोजित किया जा रहा है लेकिन करीब 30-35 वर्षों में इसने वृहद रूप ले लिया है. हर वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है तो धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन भी बड़े स्तर पर होने लगें हैं. मेले के प्रथम कवि सम्मेलन भी आयोजित किया जा रहा है. दूसरे दिन भी कई आयोजन होते हैं.
वहीं मुख्य दिवस तीसरे दिन एकादशी पर भगवान को रथ पर विराजमान कर नगर भ्रमण कराते हुए जलाशय पर ले जाया जाता है. यहां भगवान को जल में झुलाया जाता है. इसमें में हर वर्ष 2 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल होते हैं लेकिन इस बार इसका स्वरूप क्या होगा यह प्रशासन तय करेगा.
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30 वर्ष से निकल रहा अखाड़ा भी रुकेगा
श्री सांवलियाजी मंदिर मंडल के सहयोग से हर वर्ष ग्रामवासियों की ओर से जन्माष्टमी पर अखाड़ा आयोजित किया जाता है. इसमें मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के कलाकार आकर प्रदर्शन करते हैं. साथ ही कस्बे में जगह-जगह मटकी फोड़ प्रतियोगिता होती है. लेकिन कोरोना के कारण इस वर्ष अखाड़ा निकालने पर निर्णय नहीं लिया गया है. अखाड़ा के कलाकारों को भी निमंत्रण नहीं दिया है. अखाड़ा आयोजन समिति से जुड़े पदाधिकारियों ने बताया कि करीब 29-30 वर्षों से हम यह आयोजन करते आ रहे हैं लेकिन इस बार आयोजन सरकार के आदेशों के अनुरूप ही होगा.
यह है इतिहास
किवदंतियों के अनुसार संत महात्माओं की जमात में इन मूर्तियों के साथ भ्रमणशील रहती थी. एक बार जब औरंगजेब की मुगल सेना मंदिरों को तोड़ रही थी. मेवाड़ पंहुचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता चला तो वे वहां भी पहुंच गए. तब संतों ने इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर (खुला मैदान) में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर गाड़ दिया.
कालान्तर में मंडफिया निवासी भोलाराम गुर्जर नाम के ग्वाले को सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां जमीन में दबी हैं. जब उस जगह खुदाई की गई तो भोलाराम का सपना सच निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां निकलीं. फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम ले जाया गया. मझली मूर्ति को खुदाई की जगह ही स्थित किया गया. इसे प्राकट्य स्थल मंदिर भी कहा जाता है. सबसे छोटी मूर्ति भोलाराम गुर्जर द्वारा मंडफिया ग्राम ले जाई गई. इसे उन्होंने अपने घर के परिसर में स्थापित कर पूजा शुरू कर दी. चौथी मूर्ति निकालते समय खंडित हो गई जिसे वापस उसी जगह पधरा दिया गया.
मंडफिया में स्थापित श्री सांवलियाजी की मूर्ति है चमत्कारी
बाद में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए. ऐसा माना जाता है कि मंडफिया में स्थापित श्री सांवलियाजी की मूर्ति चमत्कारी है. यहां आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ के दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि सांवलिया सेठ सभी मनोरथ पूरा करते हैं. रोचक बात यह है कि लोग अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाते हैं और बड़ा चढ़ावा भी मंदिर में चढ़ाते हैं. हर माह यहां अमावस्या का मेला लगता है और एक दिन पूर्व चतुदर्शी पर भंडार होता है. हर माह यहां करीब 4 करोड़ का चढ़ावा चढ़ता है.