चित्तौड़गढ़.कुछ सालों से जिले के आसपास देसी गुड़ का नया व्यवसाय फलफूल रहा है. अपनी शुद्धता की बदौलत यहां के गुड़ की महक हरियाणा और मुंबई सहित देश के कई इलाकों तक पहुंच रही है. यहां न केवल देसी तरीके से गुड़ निर्मित किया जा रहा है बल्कि इसे बनाने में केमिकल का जरा भी इस्तेमाल नहीं किया जाता. हैरत की बात यह है कि केमिकल के स्थान पर इसे पकाने के लिए भिंडी के पानी का उपयोग किया जाता है. इससे दानेदार होने के साथ गुड ढीला भी होता है. यही वजह है कि यहां के गुड़ की डिमांड प्रदेश के बाहर भी बढ़ गई है.
हालांकि गुड़ के अधिकांश हिस्से की खपत चित्तौड़गढ़ के साथ-साथ भीलवाड़ा, उदयपुर, राजसमंद के ग्रामीण क्षेत्र में ही पूरी हो जाती है. प्रवासी लोगों के जरिए इसका स्वाद और सुगंध दिल्ली, मुंबई, हरियाणा तक पहुंच रही है. इसकी शुद्धता को देखते हुए गांव से लेकर शहर तक हर तबके को इसका स्वाद रास आ रहा है. मांग को देखते हुए गुड़ बनाने का कारोबार धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहा है. अनुमान है फिलहाल प्रतिदिन मांग के अनुरूप 40 से लेकर 50 क्विंटल तक गुड़ बनाया जा रहा है. इसके लिए हरियाणा से कारीगर भी बुलाए गए हैं जो कि भिंडी के पानी से गुड़ बनाने में माहिर हैं.
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चित्तौड़ उदयपुर मार्ग पर देवरी, घोसुंडा सहित आस-पास के गांव में गुड़ बनाने की लगभग 10 चरखी (मशीनें) चल रहीं हैं. हालांकि पहले यह लोग मेलों में ही चरखी चलाते और गुड़ बनाते थे लेकिन समय बीतने के साथ मशीनों का भी इस्तेमाल करने लगे. पूर्व में बमुश्किल 40 से 50 किलो गुड़ भी नहीं बन पाते थे लेकिन जब से मशीनें आ गईं हैं लघु उद्योग के प्रारूप में भी विस्तार हुआ है. चित्तौड़गढ़ के साथ-साथ गंगरार इलाके में बड़े पैमाने पर गन्ना बोया जाता है. इसी को देखते हुए कुछ किसानों का ध्यान गुड़ बनाने की ओर गया और धीरे-धीरे अपने प्लांट भी शुरू कर दिए.
केमिकल मुक्त गुड़ बनता है