चित्तौड़गढ़. जिले के राशमी उपखण्ड क्षेत्र में मातृकुंडिया के निकट अजवाइन की फसल वाले खेतों में शहद उत्पादन की यूनिट लगाई गई है. यहां एक कॉलोनी में मधुमक्खियों की करीब 550 बॉक्स में कॉलोनी बसाई गई है, जिनमें करीब पौने तीन करोड़ मक्खियां अजवाइन की फुलवारी से शहद के पराग को बटोर कर अपनी-अपनी कॉलोनियों में जमा करती हैं.
चित्तौड़गढ़ में फ्लैवर्ड शहद उत्पादन इस प्रजाति की मक्खियों की खासियत है कि यह अपनी कॉलोनी को छोड़ कर कहीं नहीं जाती है. इसलिए मधुमक्खियों के उड़ कर दूसरी जगह जाने का खतरा नहीं रहता है. मधुमक्खियां लौट कर पुनः अपने बॉक्स में ही आ जाती है.
100 बक्सों से शुरुआत, अब 30 हजार लीटर उत्पादन
शहर में रहने वाले नवीन माली ने आठ वर्ष पूर्व मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन का व्यवसाय शुरू किया था. इसके लिए 100 बक्सों से शुरूआत की थी. आठ वर्ष में यह व्यवसाय सालाना 30 हजार लीटर शहद उत्पादन तक जा पहुंचा है, जिसकी आपूर्ति प्रदेश ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी हो रही है.
तीस हजार लीटर शहद हो रहा उत्पादित अब बक्सों की संख्या बढ़ कर करीब 550 हो गई है. अब अजवाइन से शहद चुनने का काम पूरा हो गया और यूनिट शिफ्ट की है रही है.
छह माह ही शहद का उत्पादन, मधुमक्खियों के प्राण बचाना जरूरी
मधुमक्खी पालन करने वाले नवीन माली ने बताया कि मधुमक्खियां केवल छह माह ही शहद का उत्पादन करती है. गर्मियों के मौसम में यह शायद उत्पादित नहीं करती है. लेकिन गर्मी का मौसम इनके लिए खतरनाक भी होता है.
इटैलियन मधुमक्खी मेलिफेरा अजवाइन से ले रही पराग ऐसे में इन्हें ठंडे मौसम में ले जाया जाता है. उन्होंने बताया कि मई से अक्टूबर माह के दौरान गर्मी से मधुमक्खियों के मृत्यु का खतरा बना रहता है. ऐसे में बड़ी संख्या में मधुमक्खी पालक इस अवधि में ठंडे प्रदेश यानी जम्मू कश्मीर के लिए प्रस्थान करते हैं, जहां कॉलोनी या बसा इनके प्राण बचाए जाते हैं.
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कई प्रदेशों में जाती है यूनिट, अलग फ्लेवर का शहद
उत्पादन के हिसाब से मधुमक्खी पालक अलग-अलग प्रदेशों से विभिन्न तरह की फसलों के आस-पास कॉलोनी में बसा कर उत्पादन करते हैं. जानकारी मिली है कि मधुमक्खी पालन की यूनिट चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, कोटा, श्रीगंगानगर, पंजाब, पठानकोट, जम्मू कश्मीर व भरतपुर तक जाती है. यह अलग-अलग विशेषताओं वाले फूलों पर शहद चुनती है. इस यूनिट में अजवाइन, लीची, सरसों, जामुन, शीशम, कीकर, मीठा नीम, करेला आदि के फूलों का शहद एकत्रित किया जाता है, जो कई बीमारियों में फायदेमंद है.
अजवाइन की फुलवारी से शहद एकत्रित किए पराग में यह विशेषता होती है कि इसका शहद कभी जमता नहीं है. इसमें तीखापन होता है और पेट सम्बंधित बीमारियों में काफी फायदेमंद है. वहीं जामुन का शहद ब्लड प्रेशर तो नीम, कीकर, करेला का शहद शुगर के लिए फायदेमंद होता है.
मधुमक्खियों की है निराली दुनिया
मधुमक्खी पालन से जुड़े राजन माली का कहना है कि लोहे के बक्से में मोम जमा कर मधुमक्खी पालन किया जाता है. इटालियन मेलेफिरा की दुनिया ही निराली है. इस प्रजाति में नर एक बार निषेचन के बाद प्राण त्याग देता है. इनकी कॉलोनियों में रानी मक्खी होती हैं, जिसकी लंबाई अन्य मक्खियों की तुलना में कुछ ज्यादा होती है.
बड़े पैमाने पर हो रहा शहद उत्पादन रानी मक्खी कॉलोनियों में रह कर सिर्फ अंडे देने का काम करती हैं जबकि वर्कर मक्खियां आसपास की फुलवारी से शहद के लिए पराग लाकर एकत्रित करती है कॉलोनी में वर्कर की संख्या सर्वाधिक होती है.
विदेशों में जमे हुवे शहद की मांग
व्यवसायी राजन माली ने बताया कि देश में 85 प्रतिशत शहद जमा हुवा होता है, जो शहद सरसों का होता है। इसमे किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं की जा सकती है. इस शहद को विदेश में भेज दिया जाता है. जमे हुए शहद की मांग विदेशों में ज्यादा है. इसका कारण है कि जमा हुआ शहद असली होता है. 15 प्रतिशत लिक्विड शहद का ही देश में उत्पादन होता है. भारत में शहद की बहुत ज्यादा खपत है लेकिन देश के शहद माफिया ने लोगो में यह भ्रम फैला रखा है कि जमा हुआ शहद नकली होता है. इन शहद माफिया ने 15 शहद में शहद चाइना सिरप, कॉर्न सिरप आदि मिला कर भारत के लोगों को शहद के नाम पर जहर खिला रहे है.