चित्तौड़गढ़ की सुनीता शर्मा की कहानी चित्तौड़गढ़.कहा जाता है कि अकेली महिला दुनिया का मुकाबला नहीं कर सकती. समाज में आगे नहीं बढ़ सकती. लेकिन चित्तौड़गढ़ की सुनीता शर्मा ने इस मिथक को तोड़ा है. 12 साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठने के बाद उनके जीवन में कदम-कदम पर चुनौतियां आईं पर उन सब से निकल कर सुनीता आज आत्मनिर्भर हैं. यही नहीं वो अपने जैसी कई महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं.
12 साल की उम्र में पिता का निधन :सुनीता शर्मा के पिता चित्तौड़गढ़ में नमकीन बनाने का काम करते थे. उनका अच्छा खासा कारोबार था. 2007 में अचानक एक दुर्घटना में उनका निधन हो गया. परिवार में सुनीता के अलावा 3 भाई-बहन और थे. मां सुनीता के कंधों पर तीनों बच्चों की जिम्मेदारी डालकर अपने मायके चली गई. अब सुनीता का एकमात्र सहारा दादा-दादी थे. ढलती उम्र के कारण उनके लिए भी परिवार चलाना मुश्किल था.
पढे़ं. International Women Day 2023: अपने दम पर खड़ा किया स्टार्टअप और लिख दी सफलता की दास्तां, महिलाओं को दे रही रोजगार
परिवार चलाने के लिए 12 साल उम्र में सुनीता ने गांधी चौक पर स्थित अपने पिता के नमकीन का काम शुरू किया. यह काम अमूमन मर्दों का माना जाता है. सुनीता अकेले अपने दम पर नमकीन की भट्टियां चलाती क्योंकि तीन अन्य भाई-बहन काफी छोटे थे. नमकीन बनाने के बाद उसे ग्राहकों तक पहुंचाना एक टेढ़ी खीर थी, लेकिन सुनीता ने हार नहीं मानी और परिवार के लिए मेहनत करती रहीं.
18 साल की उम्र का इंतजार :इन विपरीत परिस्थितियों में एक बार सुनीता को आत्महत्या करने का ख्याल आया लेकिन बुढ़ी दादी और तीन छोटे भाई-बहनों को देख अन्य विकल्प तलाशने लगीं. इसी दौरान उन्हें पता चला कि किडनी बेचकर पैसे की व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन इसके लिए 18 वर्ष की उम्र होना जरूरी है. जैसे ही सुनीता 18 साल की हुईं तो वह अहमदाबाद पहुंच गई और हॉस्पिटल के चक्कर काटने लगी. उस समय सरकारी अवकाश चल रहा था. इस बीच वहां ऑटो चालकों ने उसकी व्यथा सुनी तो थोड़ी बहुत मदद कर उसे वापस चित्तौड़गढ़ भेज दिया.
रिश्तेदारों ने भी मुंह मोड़ा :जैसे-तैसे सुनीता का जीवन कट रहा था. इस बीच 2012 में पैरालिसिस अटैक आ गया. सुनीता के लिए अब पूरे परिवार को चलाना और भी मुश्किल हो गया. उसके रिश्तेदारों ने भी उससे मुंह मोड़ लिया. इस दौरान वह जयपुर के मुकेश शर्मा के संपर्क में आई जिसने उसे न केवल जयपुर में नौकरी दिलवाई बल्कि अपने परिवार में ही रखा. धीरे-धीरे मुकेश के परिवार को सुनीता भा गई और 2014 में उसकी शादी मुकेश से करवा दी गई. 2 साल बाद 2016 में उसकी दादी का भी निधन हो गया.
पढ़ें. International Women's Day : एनिमल लवर मरियम, जो लॉकडाउन में डॉग्स के साथ हुई क्रूरता के बाद राजस्थान की हो गईं
करवा चौथ के लोटे से की शुरुआत :शादी के बाद सुनीता ने अपने भाई-बहनों को भी वहीं बुला लिया. 2015 में उन्होंने करवा चौथ की पूजन सामग्री के साथ लोटे को डिजाइन कर उसे सोशल मीडिया पर डाला. एक महिला ने उसे पसंद करते हुए 3 गुने दाम में खरीद लिया. इसके बाद सुनीता ने जोहरी मार्केट में जाकर रॉ मटेरियल खरीदा और पूजन सामग्री के साथ हल्दी, मेहंदी, अंगूठी पर अपना काम बढ़ाया. धीरे-धीरे उसका व्यवसाय बढ़ने लगा तो पति मुकेश भी इसमें साथ देने लगे. दोनों ने मिलकर सजावटी सामग्री बंदनवार को नए तरीके से पेश करते हुए बड़े स्तर पर रॉ मटेरियल खरीदते हुए काम शुरू कर दिया. इसके बाद सुनीता अपने पति के साथ चित्तौड़गढ़ आ गई और श्रीनाथ स्वयं सहायता समूह की शुरुआत की. यहां महिलाओं को जोड़ा और बंदनवार बनाने का काम शुरू किया.
महाराष्ट्र, गुजरात, कोलकाता तक जाता है माल :सुनीता के अनुसार लगभग 50 से अधिक महिलाओं के जरिए उसने बंदनवार बनाने का काम शुरू किया. अपने काम को सोशल मीडिया पर ऑनलाइन प्रमोट किया. इसका नतीजा सुखद रहा और गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित देश के कई हिस्सों से ऑर्डर आने लगे. इस प्रकार सीजनल काम भी शुरू किया. होली के दौरान हर्बल गुलाल, राखी के दौरान अलग-अलग तरह की राखियों बनाने के साथ घर को सजाने संवारने के आइटम बनाने पर भी ध्यान दिया. आज सुनीता के कारोबार का सालाना टर्नओवर 30 लाख के पार हो चुका है.