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SPECIAL: कोरोना से खतरे में है नौकरानियों की आजीविका

कोरोना संक्रमण का दर्द समाज का हर वर्ग झेल रहा है. इसका सबसे ज्यादा असर रोज कमाने-खाने वालों पर पड़ा है. इनमें दिहाड़ी मजदूरी से लेकर हाथ ठेला लगाने वाले लोग शामिल हैं. घरों पर काम करने वाली नौकरानियों की आजीविका भी खतरे में है.

Maids struggling with problems,  Crisis on the livelihood of maids
कोरोना काल में बढ़ी मुसीबतें

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Published : Jun 6, 2021, 4:50 PM IST

चित्तौड़गढ़. कोरोना काल में घरेलू नौकरानियों की मुसीबतें बढ़ गईं हैं. कोरोना संक्रमण के चलते लोगों ने काम बंद करवा दिया. लॉकडाउन के प्रतिबंधों के चलते आवाजाही भी बंद कर दी गई. 10 मई से वाहनों के संचालन पर भी पाबंदी चल रही है. नतीजतन आसपास के गांव से शहर आना भी दूभर हो गया है. हालत यह है कि आज 60 से 70% महिलाएं बेरोजगार होकर अपने घर पर बैठने को मजबूर हैं.

कोरोना काल में बढ़ी मुसीबतें

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ज्यादातर विधवा या परित्यक्त महिलाएं

महिलाओं का कामकाज बंद हो गया है. हर चीज की कीमत भी बढ़ चुकी है. ऐसे में उनके सामने अपने परिवार को चलाना भी मुश्किल हो रहा है. चिंता की बात यह भी है कि इन महिलाओं में से ज्यादातर विधवा या परित्यक्त हैं. इस कारण उनके सामने परिवार का पेट पालने के लिए अन्य कोई विकल्प भी नहीं रहा. हालांकि सरकार गरीब वर्ग के लोगों के लिए कई प्रकार की योजनाएं भी चला रही है लेकिन दुर्भाग्यवश इनके पास किसी भी योजना का लाभ नहीं पहुंच रहा है.

इन समस्याओं से जूझ रहे

एक अनुमान के मुताबिक चित्तौड़गढ़ शहर में करीब 1500 से लेकर 2000 महिलाओं का गुजारा घरों पर काम करने से ही चल रहा है. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के साथ ही इनकी परेशानियां बढ़ गईं हैं.

  • लोगों ने कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार के खतरे को देखते हुए काम पर आने से रोक दिया है.
  • कोरोना पॉजिटिव के घर पर काम करने की आशंका के चलते भी कई महिलाओं को अपने काम से हाथ धोना पड़ा है.
  • कई महिलाओं से बार-बार कोरोना जांच रिपोर्ट तक मांगी गई.

इसका परिणाम यह हुआ कि आज अधिकांश महिलाएं अपने घरों पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने को मजबूर हैं.

घर में काम करती नौकरानी

कोरोना काल में बढ़ी मुसीबतें

महिलाओं का यह भी कहना है कि फिलहाल जिन-जिन घरों में काम कर रही हैं, वहां पर भी उनके लिए गांव से पहुंचना मुश्किल हो गया है. दरअसल ज्यादातर महिलाएं आसपास के गांव से आती हैं. दिन भर छह से सात स्थानों पर काम करने के बाद समय पर अपने घर पहुंच जाती थीं, लेकिन लॉकडाउन में सार्वजनिक परिवहन सेवाएं भी बंद हैं. ऐसे में बमुश्किल शहर पहुंच भी जाती हैं तो शाम को उनका घर पहुंचना मुश्किल हो जाता है. पहले से ही काम करने वाले घरों की संख्या आधी भी नहीं रही. ऐसे में घर पहुंचने के लिए वाहनों के इंतजार में घंटों निकल जाते हैं और समय पर घर नहीं पहुंच पातीं.

रोजी-रोटी का संकट गहराया

पति की मौत के बाद 7 साल से रतनी बाई अपने दो बच्चों को लेकर शहर में किराए पर रह रही है. कोरोना से पहले तक 5 से 6 घरों में काम चल रहा था. अब दो-तीन मकान ही रह गए हैं. इनकम कम हो गई जबकि खर्चे और भी बढ़ गए. इस कारण उसके सामने बच्चों का लालन-पालन भी मुश्किल हो रहा है.

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गुजर-बसर करना हुआ मुश्किल

रतन बाई सेन की मानें तो काम से आने-जाने में ही काफी वक्त लग जाता है. ना कोई ऑटो चल रहा है, ना ही कोई बस सेवा. 2-3 घरों में काम मिल रहा है, उसी में दिन निकल जाता है. कई बार घर पहुंचते-पहुंचते रात तक हो जाती है, जबकि हमें परिवार का काम भी करना होता है. शहर में आज बमुश्किल 200 से 300 महिलाएं काम कर पा रही हैं. कृष्णा का कहना है कि वाकई काम मिलना मुश्किल हो गया है. जैसे-तैसे परिवार का गुजर-बसर कर पा रही हूं.

खतरे में आजीविका

'कोरोना का खतरा इसलिए काम बंद कराया'

गृहणी मीना नागौरी और मंजू मूंदड़ा के अनुसार नौकरानी से काम कराना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि वह अलग-अलग स्थानों पर काम करती हैं. ऐसे में कोरोना का खतरा बना रहता है. इस कारण फिलहाल हमने काम करने वाली बाई को काम से हटा दिया है. हालांकि परेशानी तो आ रही है लेकिन इसके अलावा हमारे पास विकल्प भी नहीं है.

'महिलाओं का सर्वे कराकर सुध ले सरकार'

समाजसेवी और बार काउंसिल चित्तौड़गढ़ के अध्यक्ष सावन श्रीमाली के मुताबिक घर पर काम करने वाली नौकरानियों के हालात खराब हैं. ज्यादातर महिलाओं का काम छूट गया है.

कोरोना काल में बढ़ी मुसीबतें

श्रमिक नेता लक्ष्मी लाल पोखरना के मुताबिक 60 से 70 फीसदी घरेलू कामकाज पर निर्भर महिलाओं का काम छूट गया है. सरकार को जिला प्रशासन के जरिए घर का काम करने वाली महिलाओं का सर्वे कराकर उनकी सुध लेनी चाहिए.

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