चित्तौड़गढ़.जिले में इन दिनों काले सोने के रूप में शुमार अफीम की फसल की बुवाई की हुई है. बेश कीमती मानी जाने वाली अफीम की फसल की बुवाई किए एक माह से अधिक का समय हो गया है, लेकिन किसान नील गाय से अफीम की सुरक्षा को लेकर चिंतित है. साथ ही पूरे परिवार के सदस्य फसल की सुरक्षा में जुट गए हैं. वहीं चीरे लगने में अब भी दो माह का समय लगना है लेकिन अफीम बुवाई का लाइसेंस कट नहीं जाए इसे लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते.
अफीम किसानों को भारी पड़ रही काले सोने की रखवाली जानकारी के अनुसार प्रदेश में चित्तौड़गढ़ अफीम बाहुल्य क्षेत्र में आता है. प्रदेश में बोई जाने वाली कुल अफीम का करीब 57 प्रतिशत हिस्सा चित्तौड़ में ही बोया जाता है. ऐसे में यह जिला अफीम उत्पादक क्षेत्र में आता है. केंद्र सरकार की और से अफीम बुवाई के लिए लाइसेंस दिया जाता है. इसका कारण यह है कि अफीम में मार्फिन की मात्रा होती है, जिससे दवाइयां बनती है, तो वहीं यह नशे में भी काम आती है. वहीं अफीम और डोडा चुरा की तस्करी भी होती है.
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जिन किसानों को अफीम लाइसेंस आंवटित है, उन्हें केंद्र सरकार की और से निर्धारित मापदंड के अनुसार अफीम देनी होती है. ऐसे में किसान प्रयास करते हैं कि वे निर्धारित मापदंड के अनुसार अफीम सरकार को दें. अफीम फसल को सबसे अधिक नुकसान नीलगाय और डोडे आने के बाद तोते पहुंचाते हैं. ऐसे में किसान नीलगाय से फसल को बचाने के लिए मशक्कत कर रहे है.
चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर तुम्बदिया ग्राम पंचायत क्षेत्र में अफीम की बुवाई हो रखी है. इस क्षेत्र में किसानों की ओर से अफीम को नीलगायों से बचाने के लिए तीन तरफा सुरक्षा की गई है. अफीम के खेत के चारों तरफ लोहे के तार लगाए हैं, तो वहीं इसके चारों तरफ अन्य फसल बोई है. इसके बाद भी लोहे की बाढ़ लगा कर इसमें कंटीली झाड़ियां फसाई है.
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बता दें कि तोते से अफीम की फसल को बचाने के लिए नेट बांध रखी है. साथ ही किसानों के अफीम की फसल को बचाने के लिए काफी खर्चा करना पड़ता है. वहीं किसानों का प्रयास रहता है कि वे खर्चा कर के भी अपनी फसल का बचाव करें. इससे की उनका अफीम लाइसेंस बचा रहेगा.