कपासन (चित्तौड़गढ़).जिला अफीम उत्पादक की दृष्टि से प्रदेश ही नहीं देश में अग्रणी जिला माना जाता है. इसके चलते यहां के कई काश्तकारों की आजीविका इसी फसल पर निर्भर है. फिलहाल अफीम की फसल के लिए मौसम अनुकूल है. काले सोने के रूप में शुमार इस अफीम की फसल पर इन दिनों अफीम के डोडो की चिराई की शुरूआत हो गई है.
अफीम के डोडो पर चीरे लगा कर उसमें स्व निकलने वाले दूध को एकत्रित किया जा रहा है, जो ही गाढ़ा बन कर अफीम बन जाता है. इस साल किसानों को अच्छी औसत से अफीम उत्पादन होने की उम्मीद भी है. किसानों ने अफीम के खेत में स्थापित किए देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के साथ ही अफीम के डोडो को लुवाई का काम शुरू किया है.
जानकारी के अनुसार काले सोने की फसल के नाम से जानी जाने वाली महंगी अफीम की फसल नारकोटिक्स विभाग के अधीन होने से आरी के अनुसार उप्तादन होने पर उसकी पैदावार का तय सरकारी मूल्य के अनुसार काश्तकारों को भुगतान किया जाता है. अफीम की फसल काफी महंगी होने से काश्तकार भी जी तोड़ कर इस फसल की शुरूआत से ही कड़ी मेहनत कर इस व्यावसायिक फसल से अपेक्षानुरूप लाभ उठाने का प्रयास करते है. इतना ही नहीं परिवार का हर सदस्य इस फसल की परवरिश छोटे बच्चों की तरह करता है. पिछले एक पखवाड़े से दिन में गर्मी और सवेरे शाम और रात को मौसम ठंडा होने से अफीम उत्पादक किसान अपनी गाढ़ी कमाई की इस फसल अफीम के डोड़ो पर चिराई और लुवाई का कार्य करने में व्यस्त है. वहीं, नारकोटिक्स विभाग को अधिकतम उत्पादन देकर अच्छी कीमत प्राप्ति के लिये भी किसान कड़ी मेहनत कर पूरी उपज लेने में जुटे हुए है.
पूरा परिवार खेतों पर गुजार रहा समय