चित्तौडगढ़. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर देवरी गांव है. जो चित्तौडग़ढ़-उदयपुर फोरलेन पर स्थित है. पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र होने के बावजूद यहां की विशेषता है कि यहां के गुड़ की मिठास दूर-दूर तक जाती है. यहां करीब आधा दर्जन गुड़ के भट्टे (चरकियां) हैं, जहां गन्ने से रस निकाल उसे गर्म कर गुड़ तैयार किया जाता है.
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काफी समय से यहां गुड़ का व्यवसाय चल रहा है तथा शुद्धता के मामले में देवरी के गुड़ की पहचान है, जो चित्तौडग़ढ़ जिले की सीमाओं से भी बाहर निकल कर कोसों दूर तक पहुंच गई है. यहां से गुड़ राजस्थान, मध्यप्रदेश व दिल्ली तक जाता है, साथ ही हाइवे होने के कारण ट्रकों के चालक तो रूकते ही हैं, आम राहगीर भी अपने वाहन रोक गुड़ खरीद कर ले जाते हैं. यूं कहें कि गुड़ बनने के साथ ही बिकने के लिए निकल जाता है, लेकिन यहां किसान स्वयं की गन्ने की बुवाई करते हैं तो आस-पास के क्षेत्रों से गन्ना खरीद कर भी लाते है. पांच सौ रूपए का एक क्विंटल तक गन्ना खरीदना पड़ता है.
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यहां गुड़ का उत्पादन करने वालों के सामने कई चुनौतियों हैं, जिसके चलते वे इसे लघु अथवा वृहद उद्योग का रूप नहीं दे पा रहे हैं. इसमें सबसे बड़ी बाधा है सरकारी मदद की. एक दिन में एक चरखी पर 50 क्विंटल गन्ने तक का गुड़ निकाला जा सकता है.इसके लिए इन्होंने पम्पसेट लगा रखे हैं,लेकिन स्टॉक करने के लिए इनके पास कोई गोदाम नहीं है. खेती में अधिक लागत लगा कर ज्यादा प्रोडक्शन जमा करें,इसके लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में किसान गन्ने की अधिक बुवाई कर ज्यादा गुड़ तैयार करें, ऐसा कुछ नहीं है. ऐसे में गन्ना उत्पादन करने वाले किसान अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर पाते हैं. एक-दो को छोड़ कर शेष उत्पादक गुड़ निकाल कर अपने घरों में रखते हैं. इसका कारण यह है कि विवाह सीजन में गुड़ की डिमांड अधिक रहती है. ऐसे में इन्हें गुड़ एकत्रित कर भी रखना पड़ता है, लेकिन स्थान की कमी के कारण ऐसा नहीं कर पाते हैं. किसानों को जो मेहनत का मूल्य मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल रहा है.