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सर्द हवा के बीच चित्तौड़गढ़ की फिजा में बही लोक संस्कृति की बयार, कालबेलिया नृत्य से कलाकरों ने बांधा समा - Chittorgarh Culture Program

चित्तौड़गढ़ शहर शुक्रवार शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम से सराबरोर रहा. कालबेलिया नृत्य के साथ-साथ पंजाब के भांगड़ा नृत्य से कलाकारों ने दर्शकों को दांतों तले अंगुली चबाने को मजबूर कर दिया. हालांकि इस दौरान मौसम भी खलल डाला जिससे कार्यक्रम को जल्दी ही खत्म करना पड़ा.

Chittorgarh Culture Program, artists perform in chittorgarh
नृत्य से कलाकरों ने बांधा समा

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Published : Mar 13, 2021, 7:20 PM IST

चित्तौड़गढ़. ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ शहर की फिजा में शुक्रवार रात देश के विभिन्न इलाकों की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली. चाहे कालबेलिया नृत्य हो या फिर तेरहताली या फिर पंजाब का भांगड़ा अथवा कश्मीर का लोक नृत्य. कलाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर शहर के लोगों को आनंदित कर दिया. हालांकि मौसम के अचानक पलटने के साथ सर्द हवा की बयार चल रही थी लेकिन कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से उन्हें अंत तक बांधे रखा.

नृत्य से कलाकरों ने बांधा समा

इस सांस्कृतिक संध्या में जिला कलेक्टर केके शर्मा सहित पुलिस और प्रशासनिक महकमे के अधिकारी मौजूद थे. वही दर्शक दीर्घा भी खचाखच भरी थी और पैर रखने को जगह नहीं थी. मौसम को बिगड़ता देखकर अंतिम समय में प्रस्तुतियों को सीमित कर दिया गया.

हालांकि सांस्कृतिक संध्या का कार्यक्रम देरी से शुरू हो पाया. कश्मीरी लोक कलाकारों की गीत और नृत्य की प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत की गई. हालांकि गीत की प्रस्तुति कश्मीरी भाषा में थी लेकिन नृत्य की प्रस्तुति ने लोगों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया. इसके बाद हाडोती के प्रसिद्ध लाल चकरी नृत्य ने भी लोगों की खूब सराहना बटोरी. हाडोती भाषा में ही कलाकारों ने गीत की प्रस्तुति भी दी. वही उस पर आकर्षक नृत्य लोगों का मन मोह लिया. इसके बाद बाड़मेर के कलाकार सामने आए जिन्होंने पनिहारी पर केंद्रित गीत के साथ-साथ अपने नृत्य के बल पर लोगों को खूब आनंदित किया.

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खासकर दूरदराज से लाए जाने वाले पानी को लेकर वहां किस प्रकार पानी लाया ले जाता है, महिलाएं अपने सिर पर किस प्रकार मटकों को रखकर बैलेंस बनाते हुए अपने घर पहुंचती है, कलाकारों ने इसे बखूबी चित्रित किया. तलवार, कांच का ग्लास और कांच के टुकड़ों पर नृत्य की प्रस्तुति ने लोगों को दांतों तले अंगुली रखने को मजबूर कर दिया.

इसके बाद छोटे-छोटे वाद्य यंत्र के जरिए भपंग वादन भी लोगों को खूब रास आया. इसी प्रकार भवाई नृत्य की प्रस्तुति भी सांस्कृतिक संध्या को यादगार बनाने में कामयाब रही. क्योंकि मौसम बदल रहा था और सर्द हवाएं चल पड़ी है ऐसे में अंतिम समय में प्रस्तुतियों को शार्ट किया गया.

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