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जालोर-सिरोही सीट पर बरसों से लंबित हैं ये मुद्दे...सरकारें आई और गई लेकिन समस्या वहीं की वहीं

जालोर. आजादी के बाद से देश-प्रदेश में कई बार सरकारें पलटी, लेकिन जालोर की तरफ एक भी सरकार का ध्यान नहीं गया. जिसके कारण जालोर के कई ऐसे मुद्दे वर्षों से लंबित है. जिसका समाधान एक भी सरकार नहीं कर पाई है.

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Published : Mar 22, 2019, 2:45 PM IST

फोटो.

पेयजल
जालोर में पेयजल के हालत सबसे ज्यादा खराब हैं. जिले की 244 ग्राम पंचायतों के करीब 1000 गांव में लोगों को पीने का साफ पानी नसीब नहीं हो पा रहा है. पीने के पानी के लिए सरकार ने 3 प्रोजेक्ट बनाये थे लेकिन वह प्रोजेक्ट अभी तक पूरे नहीं हो पाए हैं. जालोर जिला मुख्यालय सहित सायला व आहोर के लिए बनाये गए एफआर प्रोजेक्ट का कार्य 70 प्रतिशत पूरा हो गया है. लेकिन अधिकांश गांवों में क्लस्टर का कार्य अधूरा पड़ा है.
इसके अलावा डीआर व ईआर प्रोजेक्ट का कार्य तो आधे से ज्यादा अधूरा पड़ा है. इसमें क्लस्टर का कार्य एक भी गांव में नहीं हुआ. क्लस्टर के कार्य के लिए पिछली भाजपा सरकार से बजट की मांग की गई थी, लेकिन बजट जारी नहीं किया गया. नतीजा यह रहा कि यह प्रोजेक्ट आज भी अधर में पड़ा है.
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य विभाग के जालोर में हाल भी लगभग पेयजल जैसे ही हैं. गांवों में लोगों को चिकित्सा सुविधा महरूम नहीं हो पाती है. जिसके कारण ज्यादातर लोगों को इलाज के लिए गुजरात का रुख करना पड़ता है. सरकारी स्तर पर जिले के 50 प्रतिशत चिकित्सकों की नियुक्ति सरकार ने की थी लेकिन अधिकांश चिकित्सक यहां से ट्रांसफर करवाकर चले गए या नौकरी छोड़ दी.
वहीं सरकारी अस्पतालों में सुविधा के नाम पर कुछ खास नहीं मिलता है. नि:शुल्क दवाइयों में भी काफी दवाइयां बाहर से खरीद कर लानी पड़ती है. वहीं नेशनल हाइवे सहित कई बड़े शहरों में ट्रॉमा सेंटर खोलने की मांग लम्बे समय से की जा रही है. जिसमें नेशनल हाइवे 68 पर ट्रॉमा सेंटर खोलने की स्वीकृति राज्य सरकार ने जारी की लेकिन अभी तक धरातल पर कार्य शुरू नहीं हुआ है.
शिक्षा
शिक्षा के नाम पर जालोर में प्राथमिक से माध्यमिक लेवल की स्कूलों की भरमार है लेकिन उच्च माध्यमिक या कॉलेज की संख्या बहुत कम है. जालोर जिला मुख्यालय, आहोर, रानीवाड़ा व भीनमाल में सरकारी कॉलेज हैं लेकिन सीटे पर्याप्त ना होने के कारण सैंकड़ों छात्रों को निजी कॉलेजों में जाना पड़ता है.
वहीं जिला के कई ऐसे उपखंड चितलवाना, सायला, सांचोर, बागोड़ा, जसवंतपुरा में राजकीय कॉलेज आज तक नहीं हैं. कृषि प्रधान जिला होने के कारण कृषि महाविद्यालय खोलने की मांग भी करीबन 2 दशक से उठ रही है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.
सिंचाई
जालोर के साथ सिरोही व बाड़मेर जिले के किसानों की माही परियोजना से सिंचाई के लिए पानी देने की एक योजना आज से 40 साल पहले बनी थी. इसको अभी तक धरातल पर नहीं उतारा है. इस परियोजना के लिए जालोर में किसान महापड़ाव तीन बार कर चुके हैं. पिछली बार वसुन्धरा राजे की गौरव यात्रा के दौरान किसानों ने महापड़ाव किया था तब भी किसानों को प्रिविजिबिलिटी सर्वे की बात सरकार ने कहीं थी लेकिन वो भी अभी तक नहीं हो पाया है. इस परियोजना को धरातल पर उतारा जाता है तो जिले के सभी उपखंडों के किसानों की सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सकता है.

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डेली यात्री गाड़ी की मांग
जालोर में मीटर गेज से ब्रॉडगेज बने एक दशक के समय हो गया है लेकिन अभी तक यात्री गाड़ियां एक-दो ही चलती हैं. जिसके कारण लम्बे रुट की यात्री गाड़ियां शुरू करने की मांग की जा रही है लेकिन लम्बे रुट की गाड़ियां इस ट्रेक पर नहीं है। जालोर जिले के ज्यादातर युवा प्रवास में काम करते है जिसके कारण मुम्बई व बेंगलुरु के लिए डेली यात्री गाड़ी की मांग की जा रही है लेकिन साउथ को जोड़ने वाली ट्रेन अभी तक नहीं है। इस बार जाते जाते भाजपा सरकार ने दो ट्रेनों की घोषणा की थी जिसमें से एक ट्रेन सप्ताह में दो दिन के लिए शुरू की गई है, जबकि दूसरी ट्रेन अभी तक शुरू नहीं हो पाई है. स्थानीय लोगों का आरोप है इस ब्रॉडगेज पर केवल मालगाड़ियां ही चलती रहती है लेकिन यात्री गाड़ी बहुत कम है.

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