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बिन पानी सब सून : बंका सेठ की जोहड़ी 30 साल में पूरी तरह बदल गई...अब ना प्रवासी पक्षी आते है और ना ही लोग - Water Conservation

झुंझुनूं जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अलसीसर-मलसीसर कस्बा अपनी कलात्मक चित्रकारी व हवेलियों के लिए देश विदेश में प्रख्यात है. यहां के सेठों ने कोलकाता और मुंबई मे व्यापार में जबरदस्त नाम कमाया और उनमें से ही एक थे बंका सेठ. उन्होंने अपनी जमीन गायों के चरने के लिए दान में दे दी और इसीलिए आज भी बंका का जौहड और जोहड़ी के नाम से जानते हैं.

बंका सेठ की जोहड़ी 30 साल में पूरी तरह बदल गई

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Published : Jul 17, 2019, 1:23 PM IST

झुंझुनू. बंका का जोहड़ तो मुख्य सड़क पर स्थित है और इसलिए इस जोहड़़ को पक्का बना दिया गया लेकिन जोहड़ी में जल सरंक्षण का कार्य समय के साथ-साथ विलुप्त होता गया. गांव के लोग बताते हैं कि एक समय ऐसा था कि यहां सैकड़ों पशु पानी पीते थे. गांव के किसान भी खेतों में जाते वक्त यही से पानी भरकर ले जाते थे. गांव के युवा भी जोहड़ी में नहाने के लिए चले जाते थे.

समय बदला तो जरूरतें बदल गई
समय बदला और किसानों के खेतों में ट्यूबवेल हो गए, जल सरंक्षण की प्राचीन परंपरा भी धीरे-धीरे विलुप्त होने लगी और देखते ही देखते यह जोहड़ी मे मिट्टी भरने लग गयी. ऐसे में अब इसमें ना तो पानी भरता है और ना ही विदेशी पक्षी प्रवास के लिए आते हैं. हालांकि अब भी आप इस जोहड़ी में आएंगे तो आपको पता लग जाएगा कि किस तरह से यहां पानी भरता होगा क्योंकि मिट्टी भरने के बाद भी पानी भरने के निशान आज भी इस जोहड़ी में दिखाई देते हैं. लगभग 100 बीघा की इस जोहड़ी में अब जल सरंक्षण के नाम पर भले ही कुछ नहीं बचा हो लेकिन पुराने लोगों की याद में अब भी पानी भरी हुई जोहड़ी की यादें जरूर है.

बंका सेठ की जोहड़ी 30 साल में पूरी तरह बदल गई

बहुत पुरानी बात नहीं है यह
ग्रामीण याद करते हुए बताते हैं कि लगभग 30 साल पहले तक यह जोहड़ी पूरी पानी से लबालब भरी हुई रहती थी. अब भी यदि इसकी एक बार वापस खुदाई कर दी जाए तो निश्चित यहां पानी भरने लग जाएगा और हजारों पशुओं को जीवनदान भी मिल सकेगा. इस समय बड़ी संख्या में गाय विचरण करती है और पानी के लिए उनका कोई ठोर ठिकाना नहीं रहता. ऐसे में यदि इस जोहड़ी में वापस पानी भरने लग जाए तो कम से कम पूरे साल भर के लिए पशु यहां पानी पी सकते हैं.

अब समय आ गया है कि यदि जल संरक्षण करना है तो इस जोहड़ी की वापस खुदाई करवानी होगी और इसके लिए ग्राम पंचायत स्थानीय ग्रामीण और जन संगठनों को आगे आना होगा. इसके अलावा जल के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों को भी इस तरफ ध्यान देना होगा ताकि जल सरंक्षण की पुरानी परंपरा जिंदा रह सके.

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