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विधानसभा में सीकर में खाता भी नहीं खोल सकी थी भाजपा...फिर क्या हुआ जो लोकसभा में मार ली बाजी - Sumedhand Saraswati

प्रदेश में सीकर ही एक ऐसा जिला था जिसमें विधानसभा चुनाव में भाजपा खाता तक नहीं खोल पाई थी और आठों सीटें कांग्रेस या उनके समर्थित उम्मीदवारों के खाते में गई थी. सभी विधायक कांग्रेस के होने के बाद भी आखिर सीट पर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने टिक नहीं पाई.

विधानसभा में सीकर में खाता भी नहीं खोल सकी थी भाजपा

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Published : May 24, 2019, 11:05 AM IST

सीकर.जिले के आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को बड़ी बढ़त मिली. कांग्रेस के दिग्गज नेता यहां कुछ भी नहीं कर पाए. आंकड़ों पर गौर करें तो सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 22,000 वोटों से जीत हासिल की थी लेकिन लोकसभा में कांग्रेस यहां 27,000 वोट पीछे रह गई. धोद विधानसभा से विधानसभा का चुनाव 14,000 से जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा में 38,000 वोट पीछे रह गई.

दातारामगढ़ में कांग्रेस ने विधानसभा का चुनाव हालांकि 750 वोटों से जीता था लेकिन लोकसभा में कांग्रेस यहां 40,000 से ज्यादा वोटों से पीछे रह गई. सीकर में विधानसभा में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस लोकसभा में 16,000 से ज्यादा वोटों से पीछे रह गई.

यही हाल खंडेला में हुआ जहां विधानसभा चुनाव जीतने वाले महादेव सिंह खंडेला निर्दलीय होने के बाद कांग्रेस के समर्थन में आ गए थे और कांग्रेस प्रत्याशी सुभाष मील भी सुभाष महरिया के साथ थे. इसके बाद भी कांग्रेस यहां 45,000 से ज्यादा से पीछे रही. श्रीमाधोपुर में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत कांग्रेस के विधायक हैं. इसके बाद भी कांग्रेस यहां 52 हजार से ज्यादा वोटों से पीछे रही. नीमकाथाना में भी कांग्रेस का विधायक होने के बाद भी कांग्रेस यहां 32,000 से ज्यादा वोटों से पीछे रही.

विधानसभा में सीकर में खाता भी नहीं खोल सकी थी भाजपा

सुभाष महरिया की हार की 4 सबसे बड़ी वजह

  1. मोदी फैक्टर: सीकर के वोटर ने हमेशा से कांग्रेस के पक्ष में मतदान किया है. विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस ने सभी सीटें हासिल की थी. इससे पिछली बार भी प्रदेश में कांग्रेस के केवल 21 विधायक जीते थे लेकिन सीकर ने दो विधायक दिए थे. लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर के चलते यहां के वोटर ने भाजपा प्रत्याशी को नहीं मोदी के नाम पर वोट दिए और इस वजह से सुभाष महरिया पीछे गए.
  2. कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराजगी:सुभाष महरिया लगातार तीन बार भाजपा से सांसद रहे. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेताओं को हराया. पिछले लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस के सामने निर्दलीय ताल ठोकी थी. इस बार के चुनाव में वे कांग्रेस में शामिल होकर यहां से टिकट लेकर आए थे. इस वजह से कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और हमेशा से पार्टी के साथ रहने वालों ने उनको स्वीकार नहीं किया.
  3. वरिष्ठ नेताओं का मौन रहना: सीकर जिले में कांग्रेस के दिग्गज नेता है लेकिन लोकसभा चुनाव में उन्होंने हालांकि मेहरिया के साथ प्रचार तो किया लेकिन अपने समर्थकों के सामने मौन रहे. इस वजह से कांग्रेस के कार्यकर्ता आम वोटर को नहीं जोड़ पाए. चौधरी नारायण सिंह जैसे दिग्गज नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष भी चुनाव प्रचार में कहीं नजर नहीं आए.
  4. परसराम मोरदिया फैक्टर:महरिया परिवार का सबसे बड़ा वोट बैंक धोद विधानसभा क्षेत्र में रहा है. इस बार के विधानसभा चुनाव में सुभाष महरिया ने पूरी ताकत झोंक कर परसराम मोरदिया को यहां से चुनाव जीतवाया था. परसराम मोरदिया की वजह से एक वर्ग विशेष में सुभाष महरिया के प्रति नाराजगी उभरी. यह नाराजगी इस स्तर तक पहुंच गई की सुभाष महरिया धोद में 38 हजार से ज्यादा वोटों से पीछे हो गए.

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