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विधानसभा में धाक जमाने वाली कांग्रेस...डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर रिकॉर्ड मतों से हार गई

विधानसभा चुनाव-2018 में डूंगरपुर-बांसवाड़ा से कांग्रेस पार्टी हजारों वोटों के साथ 3 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इसके 4 महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में निर्दलीय सहित पार्टी के चार में से तीन विधायक जनता के बीच अपनी साख कायम नहीं रख पाए और भाजपा प्रत्याशी कनकमल कटारा के विजय रथ को रोकने में नाकामयाब साबित हुए.

डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर रिकॉर्ड मतों से हार गई कांग्रेस

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Published : May 25, 2019, 8:49 AM IST

बांसवाड़ा. प्रदेश में भाजपा ने अपने मिशन-25 को पूरा कर लिया है. इस बीच बात करें भारतीय ट्राईबल पार्टी की तो यह पार्टी भी जनता के बीच से अपनी पहचान खोती नजर आ रही है. 2 में से 1 विधानसभा क्षेत्र में पार्टी भाजपा की जीत पर लगाम कस पाई लेकिन कांग्रेस और बीटीपी दोनों ही दलों के नेता बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा की बढ़त को रोकने में कामयाब नहीं हो पाए.

बता दें कि इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा प्रत्याशी कनकमल कटारा आजादी के बाद से अब तक सर्वाधिक तीन लाख से अधिक मतों से इस सीट को पार्टी के खाते में डालने में कामयाब रहे. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दोनों ही दलों के वोट बैंक में भाजपा भारी सेंध लगाने में सफल रही. विधानसभा और लोकसभा चुनाव के विश्लेषण में सामने आया है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के विधायक अपनी बढ़त को कई गुना और बढ़ाने में सफल रहे. बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में बांसवाड़ा और डूंगरपुर सीट आती है.

डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट पर रिकॉर्ड मतों से हार गई कांग्रेस

लोकसभा चुनाव के परिदृश्य में एक-एक सीट पर नजर डालें तो विधानसभा चुनाव के दौरान डूंगरपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र कटारा अपनी पार्टी को 1945 मतों से विजय दिला पाए जबकि विधानसभा चुनाव में 27,898 मतों से जीते थे. वहीं साल 2014 में मोदी लहर में भी उदयपुर संभाग में मात्र 2 सीटें मिली थी. उसमें बागीदौरा से महेंद्र जीत सिंह मालवीय लगातार दूसरी बार चुनाव जीते थे और 2018 में पूर्व मंत्री मालवीय 21,310 मतों से जीतने में कामयाब रहे थे. लोकसभा चुनाव में मालवीय बढ़त तो दूर पार्टी प्रत्याशी को 8,933 मतों से पिछड़ने से नहीं बचा पाए. जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया बांसवाड़ा विधानसभा सीट से 18,366 मतों से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.

वहीं बात करें बामनिया की विधानसभा क्षेत्र की तो वहां पार्टी प्रत्याशी ताराचंद भगोरा भारी मतों से पराजित हुए. बांसवाड़ा से भगोरा कटारा के मुकाबले 63,263 मतों से पिछड़े. निर्दलीय मैदान में ताल ठोकने के बाद विधानसभा पहुंची कुशलगढ़ विधायक रमिला खड़िया हालांकि बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गई लेकिन रमीला भी भगोरा को आसरा नहीं दे पाई और यहां से भाजपा 25,195 मतों से आगे निकल गई जबकि विधानसभा चुनाव में वह 18,950 मतों से जीती थी. हाल ही में अस्तित्व में आए बीटीपी सागवाड़ा विधायक रामप्रसाद अपने क्षेत्र से अपनी ही पार्टी को बढ़त नहीं दिला पाए और यहां से भाजपा प्रत्याशी 22,531 वोटों से आगे निकल गए . बीजेपी की दूसरी सीट चौरासी में जरूर भाजपा घाटे में रही और बीटीपी के मुकाबले 2,008 मतों से पिछड़ गई जबकि विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी राजकुमार रोत 12,934 मतों से जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचे थे.

भाजपा विधायकों का जलवा कायम

अब यदि दोनों ही जिलों के भाजपा विधायकों के कामकाज पर नजर डाले तो वह अपने पार्टी प्रत्याशी को भारी बढ़त दिलाने में कामयाब रहे. घाटोल विधानसभा से हरेंद्र निनामा विधानसभा चुनाव के दौरान मात्र 4,449 मतों से जीत पाए थे लेकिन लोकसभा चुनाव में इस विधानसभा से पार्टी को 68,396 की बढ़त मिली. इसी प्रकार गढ़ी विधानसभा से विधायक कैलाश मीणा खुद 24,401 के अंतर से जीते थे लेकिन लोकसभा में कटारा को यहां से 71,286 मतों की लीड मिली. कुल मिलाकर भाजपा को बांसवाड़ा गढ़ी और घाटोल से भारी बढ़त मिली. वहीं कांग्रेस और बीजेपी के विधायक पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए. इस बीच पार्टी की ओर से अपने-अपने क्षेत्रों में कमजोर प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर कई जनप्रतिनिधि और पदाधिकारी चिंता के घेरे में हैं. हालांकि जोधपुर से वैभव गहलोत और अमेठी से राहुल गांधी के हारने के बाद नेता अपने तर्क निकालने में जुटे हैं.

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