बूंदी.राजस्थान में बूंदी जिले का प्रसिद्ध रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, जो बाघों सहित सभी वन्यजीवों के लिए सदियों से बेहतर आश्रय स्थल रहा है. एक बार फिर से बाघों के स्वागत के लिए तैयार है. यहां का उत्तम प्राकृतिक वातावरण और बीच में बहने वाली सदानीरा मेज नदी और खूबसूरत वादियों में बाघों की दहाड़ ने ही इसे भारत का एक प्रमुख अभयारण्य होने का गौरव प्रदान किया है.
एक दशक तक बाघ विहीन रहने के बाद अब फिर से यह अभयारण्य बाघों के स्वागत के लिए पूर्ण रूप से तैयार हो गया है. सोमवार को अभयारण्य में रणथंभौर टाइगर रिजर्व से चलकर एक बाघ के यहां पहुंचने के बाद वन्यजीव प्रेमियों और वन विभाग को उम्मीद जगी है, कि शीघ्र ही यह महत्वपूर्ण वन क्षेत्र फिर से बाघ से आबाद होगा. बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाने की घोषणा प्रदेश के सीएम अशोक गहलोत की ओर से की थी और 2021 में टाइगर छोड़ने की घोषणा भी की गई थी.
वन विभाग के कठिन परिश्रम और T-62 के साथ ही T-91 बाघों के यहां आने के बाद अभयारण्य का स्वरूप पूरी तरह बदल गया है. यहां पर नियमित गश्त और शिकारियों पर प्रभावी नकेल कसने से बाघ के लिए प्रे-बेस बढ़ने लगा है. चीतल और सांभर की तादात में भी बढ़ोतरी हुई है. दिल्ली के राष्ट्रपति भवन से भी सांभर चीतल लाकर यहां छोड़े गए हैं, जिनका कुनबा भी अब बढ़ने लगा है.
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रामगढ़ महल के आसपास के बड़े वन क्षेत्र से विलायती बंबूल को हटा दिया गया है, ताकि बाघों के स्वछंद विचरण में बाधा उत्पन्न नहीं हो. साथ ही यहां पर घास का मैदान विकसित किया जा रहा है. अभयारण्य में भालुओं की बढ़ती तादात को देखते हुए यहां बेर और फलदार पौधे लगाने की भी तैयारी की जा रही है. जिससे भोजन की तलाश में भालुओं को आबादी के निकट आने से रोका जा सके. अब उम्मीद है कि यहां बाघों का कुनबा बढ़ेगा और जंगल में शांत हुई बाघों की दहाड़ फिर से गूंजेगी और बूंदी को इसका खोया हुआ गौरव वापस हासिल हो सकेगा.
इससे बूंदी में इको टूरिज्म के क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढे़ंगे और युवाओं के साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा. गौरतलब है कि बूंदी रियासत के हाड़ा वंशीय राजाओं के समय बाघों सहित सभी वन्यजीवों के शिकार पर पूर्ण पाबंदी थी और इसके चलते आम शिकारी जंगल में किसी भी वन्यजीव का शिकार करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे. 1880 में बागडोर संभालने वाले राम सिंह हाड़ा बाघ प्रेमी शासक हुए. जिन्होंने मेज नदी किनारे जंगल में एक महल का निर्माण करवाया, जहां से राजा बाघों को निहारा करते थे.
देश की आजादी तक बूंदी सहित हाड़ौती में बाघों सहित सभी प्रजाति के वन्यजीव मौजूद थे. लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद बाघों सहित अन्य वन्यजीवों का धड़ल्ले से शिकार होने लगा और देखते ही देखते जंगल और वन्यजीवों का अस्तित्व संकट में आ गया. अब बूंदी जिले में स्थितियां बदली है और यहां के जंगल फिर से बाघों के अनुकूल हो गए हैं. साथ ही रणथंभौर में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सरकार ने रामगढ़ और बूंदी के जंगलों को फिर से बाघों से आबाद करने की तैयारी कर ली है.
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