बूंदी.राजस्थान में गुर्जर समाज के आराध्य देव भगवान देवनारायण की जयंती रविवार को बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाएगी. इसको लेकर प्रदेश भर के सभी देवनारायण मंदिरों में विशेष सजावट की गई है और जयंती की सभी तैयारी पूरी कर ली है.
वहीं बूंदी शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर गोगास ग्राम की पहाड़ी पर स्थित देव डूंगरी देवनारायण भगवान के मंदिर पर लोगों की गहरी आस्था है. ये मंदिर यहां करीब 100 वर्षों से स्थापित है और लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
मंदिर में हर वर्ष पूर्णावर्ती और गुर्जर समाज की जयंती के उपलक्ष में अनूठे आयोजन होते हैं. आसपास के ग्रामीण और दूरदराज से आने वाले दर्शनार्थियों का यहां पर जमावड़ा लगा रहता है और मेले के रूप में यहां भगवान देवनारायण की जयंती मनाई जाती है. जिस भक्तजन कि यहां पर मनोकामना पूरी हो जाती है वह भगवान देवनारायण के मंदिर में महाप्रसादी का आयोजन करते हैं.
मंदिर स्थापित होने की कहानी है प्रचलित
देव डूंगरी स्थित भगवान देवनारायण के यहां स्थापित होने की कहानी बड़ी ही रोचक है. बताया जाता है कि 100 वर्ष पहले भगवान देवनारायण यहां पर जंगल में प्रकट हुए थे और उन्होंने यहां पर अपना स्थान जमा लिया. फिर एक ऋषि मुनि उनकी सेवा करते थे और ऋषि मुनि के एक चेले हुआ करते थे.
ऋषि मुनि ने एक दिन चेले को एक जादुई चीज देते हुए कहा कि मैं कोई से भी रूप में हूं तो मुझे यह जादुई चीज नाक के पास लाकर सूंघा देना, तो आपको एक जादू देखने को मिलेगा. ऐसे में ऋषि मुनि शेर का रूप बन गए और चेले ने उस दृश्य को देखा तो चेला वहां से शेर देख कर भाग गया और पूरे गांव में शेर वाली बात बोल दी.
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मंदिर के संरक्षक रामकरण गुर्जर बताते हैं कि उस जमाने में राजा शेरों के शिकार किया करते थे और उसी के तहत बूंदी के राजा भी यहां पर शिकार करने के लिए पहुंचे. जहां उन्होंने उसे ही ऋषि मुनि वाले शेर को देखा और उसका शिकार करने लगे तो पहली बंदूक की गोली चली तो सही, लेकिन वह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थी.
फिर राजा ने दूसरी गोली चलाई तो बंदूक से फिर गोली चली और गोली जमीन पर गिर गई और बंदूक से पानी निकलने लगा. राजा अपनी बंदूक को देख रहे थे कि शेर वहां से गायब हो गया. ऐसे में राजा ने भी पूरी प्रजा को शेर ढूंढने के लिए लगा दिया, लेकिन शेर नहीं मिल सका.
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