बूंदी.देश में कला के क्षेत्र में अपनी खास पहचान रखने वाली बूंदी चित्रशैली अब अपना अस्तित्व खोती जा रही है. बूंदी शैली बूंदी के कला प्रेमी राजा ने अपने मनोरंजन के लिए चित्रकला को प्रमुख रूप से अपनाया था. लगभग 700 साल पहले राजाओं के चित्रकारों ने विशिष्ट चित्रशैली में चित्र बनाने की परंपरा शुरू हुई थी. इस विशिष्ट शैली को बूंदी शैली के नाम से जाना जाता है. देश और विदेश में बूंदी चित्रशैली अपनी एक अलग पहचान बनाई हुई है. इस चित्रशैली के चित्र में राजा राजाओं के समयकाल मुख्य रूप से बनाए जाते थे.
अस्तित्व खो रही विश्व प्रसिद्ध बूंदी चित्रशैली..देखिए स्पेशल रिपोर्ट क्या है खास बूंदी चित्रशैली में
राजाओं की शिकार कीड़ा का दृश्य, हाथियों का दंगल, राग रागिनी, रास लीलाएं, युद्ध के लिए जाते घोड़े, राज दरबार सहित कई विषयों के चित्र शैली की पहचान है. इन चित्रों में प्राचीन समय के चित्रकारों की बारीकियों ने ही बूंदी चित्रशैली को ऊंचाई पर पहुंचाया. लेकिन आज यही चित्रशैली अपनी पहचान खोती जा रही है.
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ये चित्रशैली वर्तमान में बूंदी की सिर्फ 4 दुकानों तक ही सीमित कर रह गई है. वर्तमान में एक भी प्राचीन समय की मूल पेंटिंग नहीं बची है. यहां की सभी मूल पेंटिंग दूसरी जगहों पर चली गई है. बूंदी के दरवाजे पर आज भी बूंदी शैली कि पेंटिंग दिखाई देती है. पूरे जिले में आज बूंदी शैली के कुछ कलाकार ही बचे है और पेंटिंग को बाजार में रखने की कवायद में जुटे हुए हैं और संघर्ष कर रहे है.
आपको बता दें कि बूंदी तारागढ़ फोर्ट के अंदर विश्व प्रसिद्ध चित्र शैली का एक महल है. जहां पर आज भी 700 साल पुरानी चित्र शैली स्थापित है और उस स्थापित कला को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटक आते हैं. उसी चित्रशैली से जुड़े हुए कलाकार बूंदी में है. जो इस चित्र शैली को बचाए हुए हैं और अपना लालन पालन कर रहे हैं.
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अगर यही हाल रहा तो 1 दिन बूंदी चित्र शैली लुप्त हो जाएगी. आज वास्तव में बूंदी चित्रशैली को बचाने की सरकार को जरूरत है. साथ ही इस चित्र शैली से जुड़े कलाकारों की उनके सम्मान की भी आवश्यकता है. सरकार को भी बूंदी चित्रशैली के संरक्षण की पहल करनी चाहिए. एक और सरकार पर्यटन के लिए तरह-तरह के दावे करती हो लेकिन बूंदी पर्यटन के लिए वह दावे सब कुछ फेल होते हुए नजर आ रहे हैं.