बूंदी.जिले के ठिकरदा गांव में आज भी पुरानी संस्कृति जिंदा है. यहां पर करीब 500-1000 घर ऐसे हैं. जहां मिट्टी के बर्तनों को बनाने का काम किया जाता है. इन घरों में पूर्वजों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता था. जिन्हें आज भी नई पीढ़ी लगातार बनाने का काम कर रही है. बूंदी शहर से 8 किलोमीटर दूर ठिकरदा गांव में हर घर के बाहर मिट्टी के ढेर दिखाई देंगे और महिला हो या पुरुष सभी मिलकर मिट्टी के बर्तन को बनाते हुए दिखाई देंगे. कोई चाक के माध्यम से मटकी, दीये, बड़े दीये बनाते हुए नजर आएगा तो कोई उन्हें बनने के बाद धूप में सूखने का काम करता दिखाई देखा.
हर घर में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम जोरों पर
यह सारी प्रक्रिया ठिकरदा गांव में हर घर में हो रही है. अब दिवाली का त्योहार नजदीक है. ऐसे में हर घर में इस तरह की मिट्टी के बर्तन बनाने की प्रक्रिया जारी है. वहीं इस काम को लेकर कारीगरों का कहना है कि इन बर्तनों को बनाने के लिए दूसरे गांव से महंगी मिट्टी लाते हैं और मिट्टी को मेहनत करके साफ किया जाता है. फिर उसे बर्तन बनाने योग्य किया जाता है. कारीगरों ने बताया कि सरकार द्वारा आज भी किसी प्रकार की हमारे इस व्यवसाय के लिए कोई मदद नहीं की जा रही है. पुराने समय में काफी अच्छी मिट्टी आया करती थी और उस मिट्टी को सीधा काम ले लेते थे और बर्तन बनाने का काम शुरू कर दिया जाता था. लेकिन आज के समय काफी दूर से और काफी महंगी मिट्टी हमें मिल रही है और उस पर साफ करने में हमें काफी मेहनत का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन इतनी मेहनत करने के बाद भी हमें दाम नहीं मिल पा रहे हैं.
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बाजार में दीपक की मांग, लेकिन दाम नहीं
हालांकि कारीगरों का कहना है कि इस बार अच्छी बरसात होने से मिट्टी में नमी व कचरे की मात्रा काम आने से हमें मेहनत कम करनी पड़ रही है. वहीं लगातार बरसात की वजह से इस बार किसी भी कारीगरों ने दीपक नहीं बनाए हैं. जिसके चलते बाजारों में दीपक नहीं बिक सकें. इसी कारण अब दीपक की मांग बढ़ गई है. लगातार शहरी क्षेत्र से दुकानदारों की मांग कारीगरों से की जा रही है और हजारों की तादाद में छोटे दीपक व बड़े दीपक के ऑर्डर इन कारीगरों को मिल रहे हैं. जिससे इन कारीगरों के चेहरों पर खुशी है. कारीगरों का कहना है कि हमें ऑर्डर तो मिल रहा है लेकिन हमारी मजदूरी नहीं निकल पा रही है. करीब एक दीपक एक रुपए का बाजार में मिलता है तो हम रिटेल में यानी थोक के भाव में ₹1 में दो दीपक दुकानदारों को बेच रहे हैं. जो कि हमारी मेहनत भी नहीं निकल पा रही है.
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इलेक्ट्रॉनिक चाक के जरिए होता है मिट्टी के बर्तनों का निर्माण
इन मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कारीगरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि प्राचीन समय में चाक के माध्यम से मिट्टी के बर्तन बनाए जाते थे. लेकिन आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक चाक आ गए हैं. जिसके माध्यम से कारीगर उन बर्तनों का निर्माण कर रहे हैं. लेकिन इन ग्रामीण इलाकों में बार-बार विद्युत आपूर्ति बंद हो जाने के चलते चाक नहीं चल सकते तो मिट्टी के बर्तनों का निर्माण भी प्रभावित हो रहा है. कारीगरों ने सरकार से मांग की है कि वह समय पर बिजली और उन्हें आसानी से मिट्टी उपलब्ध करवा दें यह दोनों बड़ी समस्या हल कर दे तो उन्हें काफी आसान इस दौरान होगी.