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SPECIAL: मनरेगा के तहत पहली बार श्रमिकों को मिली रेलवे के लिए काम करने का मौका

देश में पहली बार मनरेगा के मजदूर रेलवे विभाग से जुड़कर कार्य कर रहे हैं. भारत सरकार की गाइडलाइस के अनुसार अब रेलवे विभाग भी मनरेगा से कार्य ले सकेगा. बूंदी में 8 पंचायतों में कार्य स्वीकृत हुए हैं. जिनमें से 6 पंचायतों में कार्य कर रहे हैं. दिनभर मजदूर मनरेगा के तहत रेल की पटरी के पास खड़े होकर कार्य कर रहे हैं और मजदूरों को अपने इलाके में ही काम मिल रहा है.

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पहली बार रेलवे जुड़ा मनरेगा

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Published : Aug 6, 2020, 8:00 PM IST

बूंदी. देश में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगने के साथ ही बेरोजगारी भी बढ़ गई. जिसके चलते शहर से लेकर गांव तक बेरोजगारी का भारी असर देखने को मिला और मजदूर गांव में बिना काम के घर बैठे हुए हैं. शहरों से पलायन कर अपने गांव लौटे मजदूरों को मनरेगा का सहारा मिला, लेकिन गांव में मनरेगा कार्य सीमित है. ऐसे में अब मनरेगा के तहत मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार ने मनरेगा को एक और नए विभाग से जोड़ दिया है. जिससे मजदूरों का कार्य सीमित नहीं होकर बड़ा हो जाएगा और ज्यादा तादाद में मजदूर रोजगार पा सकेंगे.

मनरेगा से अब देश का सबसे बड़ा विभाग कहा जाने वाला रेलवे विभाग जुड़ गया है. अब रेल की पटरियों पर मनरेगा के मजदूर गेती-फावड़े चलाते हुए दिखाई देंगे. यह मजदूर अब रेलवे में मनरेगा के तहत कार्य करते हुए नजर आएंगे. इस पहल के साथ मजदूर भी खुश हो गए हैं. पंचायत स्तर पर मजदूरों के लिए सीमित ही कार्य होता था और ज्यादा जॉब कार्ड नहीं बन पाते थे, लेकिन रेलवे विभाग एक ऐसा विभाग है जिसमें निरंतर कार्य जारी रहता है. ऐसे में मजदूरों की तादाद अधिक भी होगी. रेलवे में रोजगार आसानी से मजदूरों को उपलब्ध करवा सकेगा. बूंदी में रेल विभाग द्वारा गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत मजदूरों को मनरेगा कार्य में रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं.

पहली बार रेलवे से जुड़ा मनरेगा

बूंदी में पहली बार गांव के मजदूरों को मिला रेलवे का साथ

रेलवे द्वारा समय-समय पर मेंटेनेंस सहित अन्य निर्माण कार्य कराए जाते हैं, लेकिन इसके लिए बाहर के मजदूरों को कार्य पर लगाया जाता है. जिन ठेकेदारों को रेलवे द्वारा कार्य दिया जाता है वह भी बाहर के मजदूरों को ही लाते हैं. ऐसे में स्थानीय मजदूरों को कार्य नहीं मिल पाता है. लेकिन अब लॉकडाउन के बाद से स्थिति बदल गई है. बाहर के मजदूर कार्य पर नहीं आ रहे हैं. आवागमन के पर्याप्त साधन नहीं है. ऐसे में रेलवे के ठेकेदारों ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं और अपने कार्य को ब्रेक लगा दिया है. लेकिन रेलवे निरंतर चलने वाली संस्था है ऐसी स्थिति में स्थानीय मजदूरों को रेलवे का साथ मिला है.

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मनरेगा भारत सरकार की योजना है ओर रेलवे भारत सरकार का उपक्रम है, लेकिन इसके पूर्व मनरेगा के मजदूरों से रेलवे द्वारा कार्य नहीं लिया जाता था. वर्तमान में रेल लाइन के किनारे साफ-सफाई, नाली और खुदाई सहित अन्य कार्य चल रहे हैं. अकेले बूंदी में 8 पंचायतों के अंदर रेलवे विभाग ने मनरेगा मजदूरों के लिए कार्य को स्वीकृति किया है. जिनमें से वर्तमान में 6 पंचायतों में तो कार्य भी चल रहा है. दिल्ली-मुंबई लाइन पर यह कार्य स्वीकृत किए गए हैं. जहां पटरियों के चारों ओर मनरेगा मजदूर मिट्टी की खुदाई करते हुए या साफ सफाई करते हुए देखे जा सकते हैं.

मजदूरों को मिला सहारा...

रेलवे निरंतर कार्य करने वाला बड़ा उपक्रम, 24 घंटे चलता है मेंटिनेंस

अमूमन तौर पर रेलवे ऐसा उपक्रम है, जहां पर दिन रात मेंटेनेंस सहित अन्य कार्य चलते रहते हैं और करोड़ों की तादाद में कार्य करवाए जाते हैं. ऐसे में कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लगा तो पूरे देश की रेल सेवा भी इस दौरान ठप हो गई थी. फिर से रफ्तार पकड़ी तो मेंटेनेंस करने वाले ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिए और उनके पास मजदूरों का टोटा आ गया. ऐसे में भारत सरकार ने एक नया रास्ता निकालते हुए मनरेगा मजदूरों की सोची और सम्बंधित गांव में रेलवे विभाग से जुड़ने के लिए रास्ता निकाला और रोजगार देने का काम शुरू कर दिया.

बूंदी के 8 पंचायतों में काम स्वीकृत है जिनमें से 6 पंचायतों में काम चल रहा है. सबसे खास बात यह है कि जिस जगह पर यह काम चल रहा है. वहीं के ही निवासी मजदूर है और सुबह वह मनरेगा में अपनी ड्यूटी देने के साथ ही दिन भर रेल विभाग द्वारा बताए गए कार्य को पूरा करते हैं. महिला हो या पुरुष सभी हाथों में गैंती फावड़े लेकर अपने कार्य को संपन्न करने में जुटे हुए हैं.

काम में जुटी महिला...

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मनरेगा में कार्य कर रहे हैं मजदूर लालाराम और बनारसी बाई बताती है कि लॉकडाउन में हम काफी बेरोजगार हो गए थे. घर चलाने सहित बच्चों की पढ़ाई के लिए खर्च उठाना मुश्किल था हो गया था. ऐसे में मनरेगा में हमने जॉब कार्ड बनाकर पंचायत में काम भी लिया, लेकिन पंचायत में काम पूरा होने के साथ वापस से हम बेरोजगार हो गए. लेकिन हमें वापस से रेलवे में मनरेगा के तहत काम मिला है तो हम वापस से ऊर्जा के साथ काम कर रहे हैं और इससे हमारे परिवार का खर्चा चलेगा. उधर रेलवे के अधिकारी संजय झा बताते हैं कि हम सरकारी प्रक्रिया के तहत निजी ठेकेदारों को टेंडर दे देते थे और ठेकेदार अपने हिसाब से कार्य करता था और हम समय-समय पर उस पर निगरानी रखते हुए वहां पर निरीक्षण करते थे.

ऐसे में कई बार तो ठेकेदार भी सिलेंडर हो जाता था और कार्य को बंद कर देता था. जिसे हमे परेशानी का सामना करना पड़ता था. ऐसे में हमारे मन मुताबिक काम नहीं हो पाता था. लेकिन जब से मनरेगा का प्रोजेक्ट रेलवे में जुड़ा है तब से हमारे मन मुताबिक काम हो रहा है. क्योंकि मजदूर स्थानीय हैं तो उन मजदूरों के बारे में हम पूरी जानकारी रखते हैं. ठेकेदार द्वारा बाहर के लेबर लाई जाती है उनका अता-पता ज्यादा नहीं रहता. स्थानीय बंदों को तो कैसे भी करके काम कराने में हम सक्षम रहते हैं और वही सोच आज मनरेगा के तहत पूरी होती हुई नजर आ रही है.

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मनरेगा में मिल रहे हैं रोजगार के साथ-साथ अब रेलवे विभाग ने भी मनरेगा को अपने कार्य में जोड़ा है. निश्चित रूप से भारत सरकार की अच्छी पहल है और रेलवे विभाग ने भी इस पहल की तारीफ की है. निश्चित रूप से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा तो उनका परिवार खर्च भी चल पाएगा और सरकार की योजना को चार चांद भी लगेंगे. खास बात यह भी है कि रेलवे विभाग खुद अपने आप में बहुत बड़ा उपक्रम है तो अपने स्तर पर कार्य कराने में सक्षम है.

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