बूंदी. राजस्थान के बूंदी शहर को धान का कटोरा कहा जाता है. इसका कारण यह है कि प्रदेश का सबसे ज्यादा धान उत्पादक जिला बूंदी है. बूंदी की अर्थव्यवस्था चावल के साथ-साथ धान पर भी टिकी हुई है. जून महीने की शुरुआत होने के साथ ही यहां पर धान की रोपाई शुरू हो जाती है. किसानों ने धान के लिए जमीन जोत ली है और पौध नर्सरी भी तैयार करना शुरू कर दिया है.
धान के फसल पर लॉकडाउन का असर बता दें कि बूंदी में धान की रोपाई हर वर्ष बिहार से आए मजदूर करते हैं. जिले में हर साल धान की रोपाई के लिए 5 हजार बिहार के मजदूर आते हैं और हर गांव में करीब 150 मजदूर काम करते हैं. ये मजदूर धान की रोपाई करने के बाद अपने घर लौट जाते हैं. वहीं, लॉकडाउन के कारण मजदूर अपने गृह राज्य लौट गए हैं.
किसानों को नहीं मिल रहे मजदूर नहीं मिल रहे मजदूर
किसानों का कहना है कि मनरेगा के कारण स्थानीय मजदूर मिलते नहीं हैं और अगर कुछ मजदूर मिलते भी हैं तो उनके दाम अधिक होते हैं. इसके कारण वे उन मजदूरों को रखने से मना कर देते हैं. उनका कहना है कि बिहार से आने वाले मजदूर ठेके में आते हैं और अच्छी दर में उन्हें मिल जाते हैं. स्थानीय मजदूर एक बीघा के 2 हजार रुपए लेता है तो वहीं बिहार से आए मजदूर 1200 से 1300 रुपए में ही एक बीघा रोपाई कर देते हैं.
90 फीसदी धान की रोपाई बिहार के मजदूर करते हैं
बूंदी जिले में 80 से 90 फीसदी धान की रोपाई बिहार के मजदूर करते हैं. किसानों का कहना है कि अब उनको रोपाई ट्रैक्टरों से करनी होगी. किसान धान की पौध तैयार कर रहे हैं, जो आगामी 10 दिनों में तैयार हो जाएगी. वहीं, धान की पौध तैयार होने के 10 से 15 दिन में रोपाई जरूरी है. उनका कहना है कि छोटे किसान तो खुद भी बुवाई कर लेंगे, लेकिन बड़े किसानों के सामने धान रोपाई करने का संकट खड़ा हो गया है.
जिले का प्रमुख धान उत्पादक इलाका
जिले के नहरी एरिया तालेड़ा, केशवरायपाटन और बूंदी जिला प्रमुख धान उत्पादक इलाका है. 90 फीसदी चावल इन इलाकों में पैदा होता है. कृषि विभाग के उप निदेशक रमेश चंद्र ने बताया कि बूंदी में इस वर्ष 55 हजार हेक्टेयर धान की कमी का आकलन किया गया है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष वर्षा अत्यधिक होने के कारण उड़द और सोयाबीन की फसलें खराब हो गई थी, इसके बाद किसानों ने उसकी जगह धान बोना शुरू कर दिया है.
पढ़ें-ये कैसी मुसीबत...दोहरी मार झेल रहे दिव्यांगों ने कहा- सिर्फ दो वक्त की रोटी की व्यवस्था कर दो, ताकि हम भी जी लें
बता दें कि पिछले वर्ष जिले का रकबा और बढ़ गया है, लेकिन लॉकडाउन की वजह से 2000 हेक्टेयर में इस बार कमी आई है. बूंदी जिले में 45 हजार किसान परिवार धान की खेती से जुड़े हुए हैं. जिले के किसान हर वर्ष धान की रोपाई करने के लिए उत्साहित रहते हैं और मई महीने के अंत में ही धान के लिए पौध तैयार करना शुरू कर देते हैं. लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब किसानों का मोह भंग होता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि उन्हें समय पर मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं.
किसान नहीं दिखा रहे ज्यादा रुचि
किसानों का कहना है कि वह इस बार धान की फसल में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे हैं. जो किसान इस बार धान की फसल रोप रहे हैं उनकी रोपाई 15 दिन में तैयार हो जाएगी. उनका कहना है कि बिहार से मजदूर आने का इंतजार है, वह फोन पर मजदूरों से भी बात कर रहे हैं.
वहीं, कुछ और किसानों का कहना है कि हम बिना मजदूर के पौध को तैयार नहीं करेंगे. जबकि जून महीने के 10 दिन धान के पौधे को तैयार करने में खत्म हो जाते हैं और बाकी महीने उसकी रोपाई करने में खत्म हो जाती है.
पढ़ें-स्कूल खुले तो Social Distancing पालन करवाना एक चुनौती, 2 पारी और बंद पड़े स्कूल भवनों में हो सकता है कक्षाओं का संचालन
बूंदी कृषि विभाग भी लगातार किसानों को प्रेरित कर रहा है कि वह धान की आवक को कमजोर नहीं होने दे और खुद ही अपने स्तर पर धान की सीधी पौध तैयार कर उसे रोपाई के लिए लगा दें. कृषि विभाग का कहना है कि अभी लॉकडाउन जारी है और बूंदी जिला ग्रीन जोन में शामिल है. ऐसे में बिहार के जो मजदूर थे वह चले गए और उनके बूंदी में वापस समय पर आना संभव नजर नहीं आ रहा है. कृषि विभाग ने अनुमान लगाया है कि मजदूर नहीं मिलने के कारण करीब 2000 हेक्टेयर की फसल इस बार कम होगी.