बूंदी.जिले से रोजगार की चाह में इराक गए लोग परेशानी में घिर चुके हैं. ऐसे में उनको वहां कोई मदद भी नहीं मिल रही है. विदेश भेजने के नाम पर एजेंटों ने भारत से गए 40 मजदूरों से धोखाधड़ी की है. इन 40 मजदूरों में से 9 मजदूर बूंदी जिले के हैं, जो इराक के नफज इलाके में पिछले कुछ महीने से बंधक बन हुए हैं. मजदूरों के परिजनों ने उपखंड अधिकारी से न्याय की गुहार लगाई है.
बूंदी के मजदूरों को इराक में बंधक बनाने का मामला बता दें कि पीड़ित परिवारों ने अपने रिश्तेदारों के साथ विदेश मंत्रालय तक गुहार लगाई है. इस दौरान पीड़ित परिवारों के पास भारतीय दूतावास का फोन आया. जिसमें उन्हें पता लगा कि इराक के कुछ क्षेत्रों में सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं और उनमें से वह जगह भी शामिल है, जहां ये मजदूर बंधक बने हुए हैं.
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जानकारी के अनुसार नैनवा निवासी राजेंद्र बैरवा ने बताया कि टोंक जिले के कनवाड़ा गांव निवासी उनका मित्र लक्ष्मण बेरवा 12 फरवरी 2019 को रोजगार के लिए इराक गया था. उसके साथ नैनवा क्षेत्र के ग्राम धानु के निवासी उसके मामा बाबूलाल, महेंद्र कुमार मीणा, चाचा विनोद और विनोद सहित 9 लोग इराक गए थे. उन्होंने बताया कि ये सभी इराक के बगदाद के नजफ क्षेत्र में एक कंपनी में काम कर रहे थे.
राजेंद्र बैरवा ने बताया कि कुछ दिन पहले लक्ष्मण ने फोन कर उन्हें बताया कि कंपनी में काम कर रहे 40 भारतीय नागरिकों को कंपनी 2 मह से वेतन नहीं दे रही है और वेतन की मांग कर रहे हैं तो कंपनी के लोग उन्हें डरा-धमका रहे हैं. साथ ही बिना वेतन दिए बंधक बनाकर उनसे काम करवा रहे हैं.
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भारतीय मजदूरों की ओर से जब इसका विरोध किया गया तो कंपनी के लोगों ने इन मजदूरों के साथ मारपीट की और खाना भी नहीं दिया. राजेंद्र बैरवा ने बताया कि उन्हें कंपनी में इस तरीके से बंधक बनाया गया है कि उसे बाहर तक नहीं भेजा जा रहा है. उन्होंने बताया कि मजदूरों ने इराक में संपर्क कर भारतीय दूतावासों से भी अपनी बात पहुंचाई थी, लेकिन भारतीय दूतावासों ने कोई मदद नहीं की.
बता दें कि इन सभी लोगों को इराक ले जाने के लिए नैनवा का एक एजेंट ने विदेश में काम करने को लेकर 2 साल के लिए उनसे एग्रीमेंट किया था, लेकिन वीजा 1 साल का ही बनवाया था. ऐसे में जब मजदूर इराक के नजफ क्षेत्र में पहुंचे तो वहां उन्हें इस बात का पता लगा कि 1 साल का ही वीजा बनाया है. इसे लेकर जब मजदूरों ने एजेंट से बात की तो उसने बिना बात किए फोन काट दिया.
वहीं, इसकी सूचना जब मजदूरों के परिवार को मिली तो उन्होंने पूरे मामले को प्रशासन तक पहुंचाया. साथ ही पीड़तों के परिजनों ने मदद के लिए विदेश मंत्रालय का भी दरवाजा खटखटाया है, लेकिन उन्हें वहां से भी आश्वासन देकर वापस लौटा दिया गया.