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Special : आर्थिक तंगी से जूझ रहे 'स्टोन माइंस' के मजदूर...दिहाड़ी तो दूर दाने-दाने को हुए मोहताज

बूंदी का डाबी इलाका सेंड स्टोन माइंस के नाम से जाना जाता है, लेकिन कोरोना की वजह से जिले के पत्थर मंडी से जुड़े मजदूरों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई है. मजदूर इन दिनों पैसों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. घर में चूल्हा जलाने के लिए भी पैसा अब बाकी नहीं है. हालांकि, अनलॉक के बाद से दुकानें और खदानें खुल चुकी हैं, लेकिन ग्राहक नहीं मिलने से मजदूर मायूस बैठे हुए हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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पत्थर मजदूरों की आर्थिक स्थिति हुई खराब

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Published : Oct 23, 2020, 2:09 PM IST

बूंदी :आज पूरा देश कोरोना संकट से जूझ रहा है. राजस्थान में भी संक्रमितों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. प्रदेश में सारे कामकाज लगभग ठप पड़े हैं. प्रदेश में रोजगार का दूसरा बड़ा जरिया है खनन क्षेत्र, लेकिन इन दिनों खनन क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

पत्थर मजदूरों की आर्थिक स्थिति हुई खराब...

बूंदी का डाबी इलाका सेंड स्टोन माइंस के नाम से जाना जाता है. हालांकि, खनन करने वाले व्यवसाय अपने स्तर पर इस पत्थर को बेच देते हैं, लेकिन आमतौर पर बाजारों में इन पत्थरों को बेचने वाले व्यवसाय और मजदूरों की हालत इन दिनों दयनीय हो चली है. खनन व्यवसायों के साथ इनसे जुड़े मजदूरों की हालत भी इन दिनों खस्ताहाल चल रही है. जिले में कई इलाकों में पट्टी का स्टॉक लगाने वाले व्यापारियों और मजदूरों पर आर्थिक संकट गहरा गया है.

स्टोन माइंस में काम करने वाला मजदूर...

लॉकडाउन में पत्थर की बिक्री पूरी तरह बंद...

कोरोना वायरस के बाद कर्फ्यू की स्थिति हुई उसके बाद भवन निर्माण कार्य रुक गया और कार्य रुका, तो इन पर स्टॉकों पर पत्थर की मांग कम हो गई. इसके बाद लॉकडाउन में पत्थर की बिक्री पूरी तरह से बंद हो गई. जिससे इस व्यवसाय से जुड़े हजारों मजदूरों को मजदूरी नहीं मिली. स्थिति तो तब और भी बिगड़ गई, जब मजदूरों को काम से निकाल दिया गया. हालांकि अब धीरे-धीरे व्यवस्थाएं पटरी पर लौटने लगी हैं. बावजूद इसके, मजदूरों को काम तो मिल रहा है, लेकिन जितनी मेहनत मजदूर करते हैं उतना पैसा उन्हें नहीं मिल पा रहा है.

बूंदी का डाबी इलाका सेंड स्टोन माइंस के नाम से मशहूर...

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मजदूरों का कहना है कि आम तौर पर वे 500 से लेकर 1000 रुपये तक की मजदूरी किया करते थे, लेकिन वर्तमान उन्हें कोई 20 से 50 रुपये भी देने को तैयार नहीं है. दिन भर वो पत्थर के स्टॉक पर बैठे रहते हैं और ग्राहकों की राह तकते रहते हैं. उन्हें उम्मीद होती है कि कोई तो ग्राहक उनके पास जरूर आएगा, लेकिन पूरा दिन बीत जाने के बाद खाली हाथ घर लौट आते हैं.

सपने में नहीं सोचा, आर्थिक तंगी से जूझना होगा...

मजदूर कहते हैं कि उन्होंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि कोरोना वायरस के इस काल में उन्हें इतना आर्थिक तंगी से जूझना होगा. आज मजदूर दो जून की रोटी के लिए भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो चले हैं. जहां बड़े-बड़े ट्रक, पिकअप और दिनभर मजदूरों की चहल-पहल रहा करती थी, वहां आज सन्नाटा पसरा हुआ है और पत्थरों के भी कदम यहां रुक से गए हैं. कोई लेने वाला कोई देने वाला अब नहीं बचा है.

कई मजदूर बैठे हैं बेरोजगार...

शहर से 60 किलोमीटर दूर बरड़ क्षेत्र में स्थित डाबी इलाका जहां भारी संख्या में सेंड स्टोन पत्थर की खाने हैं. कोटा, बूंदी, बिजोलिया, भीलवाड़ा सहित राजस्थान के आधे जिलों में यहां का पत्थर सप्लाई किया जाता है और हजारों मजदूर इस खनन क्षेत्र से जुड़े हैं. लॉकडाउन के कारण पूरी खाने करीब-करीब बंद पड़ी हैं.

मजदूरोंं का मेहनताना घटा...

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इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारी बबलू उर्फ आरिफ बताते हैं कि डाबी इलाके में बड़े चट्टानी पत्थरों का कारोबार होता है और उन चट्टानों को बूंदी लाया जाता है. जहां शहर में स्थित करीब 35 पट्टियों के स्टॉक पर वह पत्थर ट्रकों के माध्यम से लाते हैं और यहां पर स्थानीय मजदूर या पट्टी स्टॉक पर काम कर रहे मजदूर के मार्फत उसे भवन निर्माण कार्य में उपयोग के लिए बना दिया जाता है. पहले उनके पास 80 से 90 मजदूर मजदूरी किया करते थे, लेकिन काम कम होने की वजह से अब केवल 35 मजदूर ही काम कर रहे हैं. इनमें भी सभी को मजदूरी मिल जाए, ऐसा भी कभी-कभी ही हो पाता है.

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