बीकानेर.माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को गौरी तृतीया कहा जाता है. वैसे तो हर माह की तृतीया तिथि को गौरी तृतीया कहा जाता है, लेकिन भविष्यपुराण के अनुसार माघ मास की शुक्ल तृतीया अन्य महीनों की तृतीया से अधिक महत्व रखती है. माघ मास की तृतीया को गौरी पूजा के विधान के चलते यह स्त्रियों को विशेष फल देने वाली मानी गई है. इसका उल्लेख शास्त्रों में भी मिलता है. भविष्यपुराण में ब्राह्मपर्व के अनुसार भगवती गौरी ने धर्मराज से कहा था कि माघ मास की तृतीया को गुड़ और लवण (नमक) का दान स्त्रियों और पुरुषों के लिए अत्यंत श्रेयस्कर है. इसलिए इस दिन मोदक और जल का दान करें.
धर्म शास्त्रों में मिलता उल्लेख:पद्मपुराण, सृष्टि खंड के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया मन्वंतर तिथि है. उस दिन जो कुछ दान दिया जाता है उसका फल अक्षय बताया गया है. धर्मसिंधु के अनुसार माघ मास में ईंधन, कंबल, वस्त्र, जूता, तेल, रूई से भरी रजाई, सोना, अन्न दान का बड़ा भारी फल मिलता है. माघ मास में तिलदान का महत्व खासतौर से तिल भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए. शतभिषा नक्षत्र में अगरु और चन्दन दान करने से शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं. पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में साबुत उड़द के दान से सभी कष्ट से आराम व सुख प्राप्त होता है.
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क्या है पौराणिक महत्व: गौरी तृतीया शास्त्रों के अनुसार जो लोग विधि-विधान से देवी की पूजा करते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने वाली महिलाओं को सुखी वैवाहिक जीवन और संतान की प्राप्ति होती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि देवी गौरी ने राजा दक्ष की पुत्री के रूप में धरती पर जन्म लिया था. वह सती के नाम से जानी जाती थी. उसने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की. भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूरी की.
ये है पूजा विधान:भगवान गणेश को हमें जल, रोली, सिंदूर, पवित्र धागा, चावल, पान के पत्ते, लौंग, सुपारी, इलायची, बेल पत्र, फल, सूखे मेवे और कुछ पैसे से पूजा करनी चाहिए. देवी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर सिंदूर, चंदन, मेंहदी आदि से सजाना चाहिए. देवी की मूर्ति को सजाने के लिए प्रसाधन सामग्री का उपयोग किया जाता है. मूर्तियों की पूजा आरती के बाद गौरी तृतीया कथा सुनी जाती है.
गौरी तृतीया व्रत का फल: यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. तृतीया तिथि विवाहित स्त्री के लिए अत्यंत शुभ दिन मानी जाती है. इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. जो अविवाहित हैं वे योग्य वर पाने के लिए यह व्रत रखती हैं. देवी सती को हिंदू संस्कृति में विभिन्न नामों से जाना जाता है. मान्यता है कि शुक्ल पक्ष की तृतीया को देवी सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था. इस प्रकार, यह भक्तों के लिए एक शुभ दिन माना जाता है. इस व्रत को करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.