बीकानेर. हिंदू पंचांग के अनुसार विवाह पंचमी को भगवान राम और माता सीता के विवाहोत्सव के रूप में मनाया जाता है (Vivah panchami Today). विवाह पंचमी के दिन त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और माता सीता का विवाह हुआ था. इस तिथि को विवाह पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन कई जगहों पर भगवान राम और माता सीता का विवाहोत्सव आयोजित किया जाता है.
ये है आज मुहूर्त:28 नवंबर के दिन सुबह 11 बजकर 53 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त, शाम 05 बजकर 21 मिनट से लेकर 05 बजकर 49 मिनट तक अमृत काल मुहूर्त और इसी दिन सुबह 10 बजकर 29 मिनट से लेकर सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. इस शुभ मुहूर्त में पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है.
स्वयंवर में रखी शर्त:माता सीता ने बचपन में पूजा स्थल पर जब शिव धनुष को देखा था तब उन्होंने अकेले अपने बाएं हाथ से धनुष को उठा लिया था. महाराज जनक ने जब इस अद्भुत दृश्य को देखा था, तब उन्होने प्रतिज्ञा ली थी जिस तरह देवी सीता अलौकिक हैं, उसी तरह उनका पति होना चाहिए. तब देवी सीता के पिता राजा जनक ने शर्त रखी थी कि जो कोई भी भगवान शिव के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही देवी सीता का वर होगा.
राजा जनक ने स्वयंवर की तिथि निर्धारित कर सभी राजा- महाराजा को विवाह के लिए निमंत्रण भेजा. वहां आए सभी लोगों ने एक-एक कर धनुष को उठाने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली. गुरु की आज्ञा से श्री राम धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो वह टूट गया. इसके बाद धूमधाम से सीता व राम का विवाह हुआ.
अयोध्या से जनकपुरी तक महत्व:विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और सीता के वैवाहिक जीवन का प्रारंभ हुआ था इसलिए इस तिथि का विशेष महत्व है. इस दिन राम विवाह की कथा सुनना बेहद शुभ होता है. जो लोग इस दिन रामचरित मानस का संपूर्ण पाठ करते हैं उनका वैवाहिक और पारिवारिक जीवन दोनों सुखमय होता है. अयोध्या से मिथिला और जनकपुरी तक भगवान राम का विवाह धूमधाम से मनाया जाता है.
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विवाह पंचमी के दिन विवाह नहीं:विवाह पंचमी की तिथि को लेकर कई तरह की मान्यता और भ्रांतियां भी हैं. कुछ लोग इस तिथि को अबूझ मुहूर्त बताते है वहीं कुछ माता-पिता अपनी बेटी का विवाह करने से बचते हैं. बताया जाता है कि जिस तरह इस तिथि पर विवाह करने के बाद माता सीता को 14 वर्षों के लिए वनवास जाना पड़ा और फिर अयोध्या वापस आने के बाद गर्भवती माता सीता को राजमहल छोड़कर जाना पड़ा. उन्हें कुटिया में रहना पड़ा. यही वजह है कि माता पिता को इस बात की चिंता रहती है कहीं माता सीता की तरह उनकी बेटी के साथ ऐसा न हो, इसलिए इस तिथि को विवाह करने से बचते हैं.
विधि पूर्वक करें पूजा:इस दिन भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें. इसके बाद भगवान राम की प्रतिमा पर पीतांबरी और माता सीता की प्रतिमा पर चुनरी अर्पित करें. इसके बाद रामचरित मानस में दिए गए प्रसंग का पाठ करें. इसके बाद 'ऊं जानकीवल्लभाय नमः' का जाप करें. साथ ही भगवान राम की पीतांबरी में मां सीती की चुनरी से गठबंधन करें. साथ ही राम विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते हुए भगवान राम और माता सीता के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करें.