बीकानेर.सनातन धर्म शास्त्रों में भगवान शिव को अनंत और आदि कहा गया है. कथाओं में मान्यता है कि सृष्टि का जीवन चक्र भगवान शिव से शुरू होता है और भगवान शिव पर ही खत्म होता है. भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है और यह अपने भक्तों की थोड़ी सी पूजा आराधना से ही प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहते हैं. वैसे तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन के महीने का विशेष महत्व है, लेकिन सप्ताहिक दिन में सोमवार और तिथि में प्रदोष का दिन विशेष महत्व रखता है और प्रदोष और सोमवार का एक ही दिन होने का सहयोग हिन्दू नववर्ष में इस बार पहले ही प्रदोष में आ रहा है.
सोम प्रदोष का महत्व : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो प्रदोष का व्रत सप्ताह के किसी न किसी बार में आता है और उस बार के नाम से ही प्रदोष का व्रत होता है. हर बार के हिसाब से आने वाले प्रदोष व्रत का अपना एक महत्व है और मान्यता है कि जो सोम प्रदोष व्रत को विधि-विधान से करता है तो उसके जीवन से जुड़े सभी दोष, रोग, शत्रु दूर हो जाते हैं और उसे सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सोम प्रदोष का व्रत करने वाले साधक पर हर समय शिव की कृपा बरसती रहती है.
संकट होते हैं दूर : पंडित राजेंद्र किराडू ने कहा कि प्रदोष व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना करनी चाहिए. दिनभर निराहार रहकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण करना चाहिए. प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है. साथ ही सुख सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है. प्रदोष व्रत महिलाएं और पुरुष दोनों के लिए समानरूप से पुण्य फलदायी है.