बीकानेर.पितरों की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में तर्पण का खास महत्व शास्त्रों में बताया गया है. अपने पूर्वजों यानी कि पितरों की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष में उनके श्राद्ध तिथि के मौके पर ब्राह्मणों को यथायोग्य भोजन कराना चाहिए.
श्राद्ध में तर्पण का महत्वः पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि ज्योतिष और धर्म शास्त्रों में श्राद्ध को लेकर कहा गया है पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं. वहीं, तर्पण में पितरों, देवताओं, ऋषियों को तिल मिश्रित जल अर्पित करके तृप्त किया जाता है. इसी प्रकार पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति के लिए सहज और सरल माना गया है.
तर्पण का क्या फल हैःपंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि ब्रह्म पुराण के मुताबिक पितरों को तिल मिश्रित जल की तीन अंजलियां प्रदान करने से जन्म से अर्पण के दिन तक किए गए पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं. कर्म पुराण के अनुसार श्राद्ध पक्ष ( पितृपक्ष) में पितरों के निमित तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. घर परिवार मे सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है.
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इसलिए किया जाता है अर्पणः उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में पितर मृत्युलोक में आते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं. पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ पक्ष में पिंड दान, ब्राह्मण भोजन, पंचबलि, काक बलि, श्वान बलि, गौबलि, ब्राह्मण भोजन आदि का शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया गया है.
तर्पण कौनसे पात्रों से करने चाहिए:पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि आधुनिक सूत्रावलि के अनुसार सोना, चांदी, तांबा, कांसे का पात्र पितरों के तर्पण के लिए श्रेष्ठ माना गया है. वहीं, मिट्टी के पात्र व लोहे के पात्र को सर्वथा वर्जित किया गया है.
तर्पण कितने प्रकार के होते हैः उन्होंने बताया कि धर्म शास्त्रों में तर्पण कर्म को छह भागों में विभक्त किया गया है. इसमें पहला देव तर्पण, दूसरा ऋषि तर्पण, तीसरा दिव्य मनुष्य तर्पण, चौथा दिव्य पितृ तर्पण, पांचवां यम तर्पण और छठा मनुष्य पितृत तर्पण कर्म बताया गया है.
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तर्पण में तिल का क्या का महत्व हैः पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि हरिहर भाष्य के अनुसार पितरों का तर्पण करते समय काले तिलों का उपयोग किया जाता है. तर्पण में तिल और कुशा का विशेष महत्व है. वायु पुराण के अनुसार तिल मिश्रित जल कुशा के साथ श्रद्धा से पितरों को अर्पित करने पर, वह अमृत रूप में उन्हें प्राप्त होता है. तिल और कुश दोनों भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुए हैं और पितरों को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है.