बीकानेर.साल में दो बार नवरात्रि अर्थात चैत्र व शारदीय नवरात्रि पड़ती है तो वहीं दो गुप्त नवरात्र होते हैं. देवी की आराधना का पर्व नवरात्र माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इन 9 दिनों में यदि देवी की आराधना सच्चे मन से की जाए तो जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं. नवरात्र में पूजा का अपना विधान है और उसका महत्व भी है, लेकिन नवरात्र में देवी का आगमन किस सवारी पर होगा इसको लेकर भी लोगों में उत्सुकता बनी रहती है. हालांकि, शास्त्रों के जानकारों में इसको लेकर मतभिनता देखने को मिलती है.
हाथी पर सवार होकर आएगी माता :कहा जाता है कि नवरात्रि के रविवार से शुरू होने के चलते इस बार माता का आगमन हाथी पर हो रहा है. प्रतिपदा के आधार पर मां दुर्गा की सवारी के बारे में पता चलता है. नवरात्रि में माता की सवारी का विशेष महत्व होता है. हाथी पर माता का आगमन इस साल अच्छी वर्षा व खेती का संकेत है.
सक्रांति की होती है सवारी :वहीं, इससे अलग पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि मकर सक्रांति के आगमन पर मां दुर्गा की सवारी से जुड़ी बात कही जा सकती है. इसको शुभ और अशुभ संकेत फल से जोड़कर देखा जाता है. किराडू कहते हैं कि शुभ और अशुभ संकेत का फल सवारी से जोड़कर देखने की बात देश के दक्षिणी और पूर्वोत्तर राज्यों में होती है, लेकिन उत्तर भारत में इस तरह की भ्रांति नहीं है.
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दिन से जोड़कर देखने का प्रचलन :नवरात्रि शुरू होने वाले वार को लेकर शुभ-अशुभ संकेत मिलने की बात भी कही जाती है. कहा जाता है कि नवरात्र यदि सोमवार या रविवार के दिन शुरू होता है तो मां दुर्गा का वाहन हाथी होता है. नवरात्रि अगर शनिवार या मंगलवार से शुरू होती है तो माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं. गुरुवार या शुक्रवार से नवरात्रि की शुरुआत होने पर देवी का आगमन डोली में होती है. वहीं, बुधवार से अगर नवरात्र शुरू होती है तो मां दुर्गा का वाहन नौका होता है. देवी का आगमन नौका पर होने से फसल सिंचाई का पानी पर्याप्त बारिश होने के संकेत की बात कही जा रही है.
देवी की सवारी सिंह बाकी भ्रांतियां :पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि देवी के हाथी पर सवार होने की बात प्रमाणिक नहीं है. किराडू के अनुसार मां दुर्गा हमेशा ही सिंह पर सवार रहती हैं. ऐसे में नवरात्र में नौका या किसी अन्य वाहन पर सवार होने की बात केवल मनगढ़ंत बात है. इस पर किसी भी तरह का कोई तार्किक प्रमाण नहीं है.
इस मुहूर्त में करें घटस्थापना :वहीं, आज शारदीय नवरात्र प्रतिपदा यानि नवरात्र का पहला दिन है. शास्त्रों के मुताबिक जगतपिता ब्रह्मा ने भगवती मां दुर्गा के नौ रूप को अलग-अलग नाम दिए और देवी के इन नौ रूपों की नवरात्र में पूजा होती है. हर देवी की पूजा का दिन निर्धारित है. नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू के अनुसार अश्विन मास की प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैद्यत योग होने के कारण श्रेष्ठ मुहूर्त घटस्थापना (वैधत्त) वास्ते अभिजित मुहूर्त 12 बजे से 12.47 तक ज्यादा श्रेष्ठ रहेगा. वैसे प्रात: काल 9.30 बजे से भी श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा.
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नौ दिन नौ स्वरूप :नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है. नौ दिन नवाहन परायण, देवी अथर्वशीर्ष, दुर्गा सप्तशती, श्रीसूक्त कनकधारा स्तोत्र देवी भागवत, देवी पुराण और रामायण का वाचन और परायण पाठ भी होता है. प्रथम दिन मां शैलपुत्री का आह्वान करके पूजन किया जाता है. प्रतिपदा नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी. नौ दिन के देवी आराधना में प्रतिपदा को घटस्थापना के साथ नौ दिनों की पूजा का क्रम शुरू होता है. देवी की आराधना और पूजा करने के साथ ही नौ दिन तक व्रत भी किया जाता है.
पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना :पञ्चांगकर्ता पंडित किराडू ने बताया कि मां शैलपुत्री ही माता पार्वती हैं. इनका भगवान शंकर से विवाह हुआ था. मां पार्वती के स्वरूप शैलपुत्री का पूजन नवरात्र के पहले दिन होता है. देवी सिंह पर ही आरूढ़ होती हैं. भगवान ब्रह्मा जी ने देवी के अलग-अलग नौ रूपों का नामकरण किया तो मां शैलपुत्री वृषभ की सवारी के साथ प्रकट हुईं. इस दौरान उनके हाथों में त्रिशूल था. किराडू कहते हैं कि मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री है. हिमालय का दूसरा नाम शैल है. हिमालय ने मां भगवती की कठोर तपस्या करते हुए आराधना की और पुत्री रूपी में देवी को पाने की इच्छा जताई. देवी ने हिमालय की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान देते हुए उनकी पुत्री रूप में अवतार लिया. अपने पिता के नाम से ही इनका नाम शैलपुत्री हुआ.
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श्वेत पुष्प देवी को अति प्रिय : किराडू ने बताया कि देवी के पूजन में सभी पुष्प अर्पित किए जाते हैं. उन्होंने बताया कि शास्त्रों में पूजन से जुड़े उल्लेख में माता शैलपुत्री को श्वेत पुष्प अति प्रिय बताया गया है. पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा में श्वेत पुष्प चढ़ाना श्रेयस्कर बताया गया है और इससे मनोरथ सिद्ध होता है. पंडित किराडू ने बताया कि नवरात्र में देवी की आराधना के दौरान मंत्रों का जाप कर साधक वरदान प्राप्त करते हैं.