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अयोध्या में भगवान राम की Shaligram से बनेगी मूर्ति, जानिए क्या है शालिग्राम से जुड़ी मान्यता

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए नेपाल से शालिग्राम पत्थर की दो विशाल शिलाएं मंगवाई गई हैं. इन्हीं से भगवान राम की प्रतिमा बनेगी. ऐसे में आइए जानते हैं कि शालिग्राम का धार्मिक, पौराणिक महत्व और इससे जुड़ी मान्यताएं क्या हैं.

Shaligram stone for Lord Ram statue in Ayodhya
अयोध्या में भगवान राम की Shaligram से बनेगी मूर्ति, जानिए क्या है शालिग्राम से जुड़ी मान्यता

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Published : Feb 4, 2023, 6:31 AM IST

बीकानेर.अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा के लिए नेपाल से शालिग्राम पत्थर की दो शिला लाई गई है. शालिग्राम की शिलाओं को लाने के बाद अब इनके महत्व और इसके पौराणिक इतिहास को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं. आइए जानते हैं इनके बारे में...

हिंदू धर्म शास्त्रों में शालिग्राम का महत्व:विष्णु के स्वरूप को मानकर वैष्णव संप्रदाय में शालिग्राम की पूजा की जाती है. धर्म शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए गए हैं. लेकिन शालिग्राम भगवान विष्णु का अवतार नहीं है. इनकी विष्णु के अलग-अलग अवतार के रूप में ही मान्यता रखते हुए पूजा की जाती है. भगवान विष्णु के अवतारों के अनुसार शालिग्राम यदि गोल है, तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप है. मछली के आकार का शालिग्राम श्रीहरि के मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है. शालिग्राम कछुए के आकार का है, तो श्री हरिविष्णु के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है.

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क्या है शंख, लिंगम और शालिग्राम:भगवान ब्रह्मा को शंख, शिव को शिवलिंग और भगवान विष्णु को शालिग्राम रूप में मानकर पूजा की जाती है. शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है. शंख, शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान का विग्रह रूप माना जाता है और पुराणों के अनुसार भगवान के इस विग्रह रूप की ही पूजा की जानी चाहिए. शालिग्राम को धार्मिक आधार पर भगवान विष्णु के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है.

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गंडकी नदी का महत्व:शालिग्राम मूल रूप से नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली काली गंडकी नदी में ही है. इसलिए शालिग्राम को गंडकी नंदन भी कहते हैं. गंडकी में पाए जाने वाला एक गोलाकार, आमतौर पर काले रंग की शिला के छोटे-छोटे जीवाश्म को विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में पूजते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार वृंदा जो कि तुलसी रूप में अब पूज्य है. वृंदा का त्यागा हुआ शरीर गंडकी नदी में तब्दील हो गया और उसके बालों से निकली झाड़ी तुलसी बनी. वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप में होने का श्राप दिया था. इसलिए शापित होने पर भगवान विष्णु ने गंडकी नदी के तट पर एक बड़े चट्टानी पर्वत का रूप धारण किया, जिसे शालिग्राम के नाम से जाना जाता है.

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इस पर्वत की सतह से कीड़े द्वारा काटने से गिरे पत्थर गंडकी नदी में गिरते हैं और गिरते-पड़ते पत्थर एक आकार ले लेते हैं. ये ही शालिग्राम शिला के रूप में जाने जाते हैं. शालिग्राम भगवान विष्णु का प्रसिद्ध नाम है, जो इन्हें देवी वृंदा के शाप के बाद मिला है. भगवान विष्णु के शिला रूप में शालिग्राम और लक्ष्मी स्वरूप में तुलसी से विवाह वर्णन पुराणों में मिलता है और देव उठनी एकादशी उसी दिन होती है. शालिग्राम को स्वयंभू स्वरूप माना जाता है. इसलिए कोई भी व्यक्ति इन्हें घर या मंदिर में स्थापित करके पूजा कर सकता है. शालिग्राम को अर्पित किया हुआ पंचामृत प्रसाद के रूप में लेने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है. पूजा में शालिग्राम पर चढ़ाया हुआ जल तीर्थों में स्नान के समान पुण्य माना जाता है.

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