बीकानेर.सनातन धर्म में पितृ पक्ष में लगभग 15 दिनों तक पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, ताकि पितरों के लिए इस पक्ष में पूजन तर्पण कार्य किया जा सके. पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष चलता है. बीकानेर के पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू से जानिए श्राद्ध पक्ष का महत्व और इससे जुड़ी वो महत्वपूर्ण जानकारी जिनका श्राद्ध पक्ष में ध्यान रखा जाना चाहिए.
क्या है श्राद्ध का महत्व ? : धर्मशास्त्रीय मर्यादा अनुसार मनुष्य जन्म लेते ही ऋषि ऋण, देव ऋण और पितृ ऋण से ऋणी बन जाता है. ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है.
क्या है श्राद्ध का अर्थ ? : श्राद्ध का अर्थ है, श्रद्धा से जो कुछ किया जाता है. 'श्रद्धया दीयते यत्त्ततश्राद्ध' पितृपक्ष में पिता की मृत्युतिथि के दिन सर्व सुलभजल, तिल, यत्र, कुश, अक्षत, इध पुष्प आदि से उनका श्राद्ध सम्पन्न किया जाता है. इसके लिए कर्मकाण्ड में कुछ विधान निश्चित है.
पढ़ें :Pitru Paksha 2023 : गयाजी में 300 वर्ष पुराने बही-खातों में दर्ज हैं आपके पुरखों की जानकारी
क्या है पितृपक्ष और कितने दिन का होता है ? : आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के पन्द्रह दिन पितृपक्ष के नाम से विख्यात है. इन पन्द्रह दिन में लोग अपने पितरों के निमित्त जल देते हैं और उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं. पितृपक्ष श्राद्ध पक्ष के लिए निश्चित 15 तिथियों का एक समूह है. वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि से अपने पित्तरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है.
श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं ? : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि धर्मशास्त्र निर्णय सिन्धु में 12 प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए हैं. नित्ययाद नैमित्तिकश्राद, काम्य श्राद्ध, वृद्धिवाद सग्निश्राद्ध, पार्वणश्राद्ध, गोष्ठी श्राद्ध, शुद्धर्थ श्राद्ध तीर्थश्राद्ध, यात्रार्थ श्राद्ध और पुष्ट्यर्थ श्राद्ध। किराडू कहते हैं कि वर्ष भर में श्राद्ध दो बार आता है एक व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर, जिसे पद्म पुराण आदि में एकोपदिष्ट श्राद्ध कहते हैं. दूसरा श्राद्ध पितृ पक्ष में आता है, जिसे पार्वण श्राद्ध कहते हैं.
धर्मशास्त्रों में क्या है श्राद्ध की महिमा ? :भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के पक्ष में पितरों के प्रति उनकी संतुष्टि के उद्देश्य के लिए गरुड़ पुराण अनुसार श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण, पिण्डदान, पितृयज्ञ ब्राह्मण भोजन आदि श्रेष्ठ कर्म किए जाते हैं, जिससे पितर प्रसन्न होकर मनुष्यों को आयु, यश, पुत्र, कीर्ति, पुष्टि वैभव, भुख- धन-धान्य प्रदान करते हैं.
श्राद्ध के अधिकारी कौन होते हैं ? : किराडू कहते हैं कि विष्णुपुराण, गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार केवल पुत्र को होता है, लेकिन पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर्म कर सकता है. यदि पुत्र न हो तो पुत्री का पुत्र यानि दोहिता या परिवार का कोई उत्तराधिकारी श्राद्ध कर सकता है, जिस व्यक्ति के अनेक पुत्र हों तो उन पुत्रों में से केवल ज्येष्ठ (बड़ा) पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए.
श्राद्धकर्त्ता के लिए वर्जित क्या है ? : जो श्राद्ध करने के अधिकारी हैं, उन्हें सम्पूर्ण पितृपक्ष में सौर कर्म नहीं करना चाहिए. व्रत उपवास करना चाहिए. ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करना चाहिए. श्राद्ध करने के बाद ही अन्न ग्रहण करना चाहिए. इस दौरान तेल नहीं लगाना चाहिए और दूसरे का अन्न नहीं खाना चाहिए.
श्राद्ध कहां करना चाहिए ? : सबसे पवित्र स्थान गया तीर्थ है. काठियावाड़ का सिद्धपुर. हरिद्वार कुरुक्षेत्र एवं अन्य पवित्र नदियों पर भी श्राद्ध तर्पण पिण्डदान का अत्यधिक महत्व शास्त्रों में बताया गया है.