बीकानेर. अपने पूर्वजों को उनकी मृत्यु तिथि पर सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार श्राद्ध पक्ष में याद किया जाता है. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक की अवधि को श्राद्धपक्ष (Pitru Paksha 2022) कहा जाता है. इस अवधि में 16 तिथियां होती हैं और पूरे वर्ष में किसी भी प्राणी की मृत्यु इन्हीं तिथियों में होती है. पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सनातन धर्म के अलग-अलग शास्त्रों में श्राद्ध पक्ष के बारे में विस्तार से बताया गया है और इस दिन हवन पूजन तर्पण अपने पूर्वजों की याद में करना श्रेयस्कर कर माना गया है.
किस अनुसार होता है श्राद्ध तिथि- किराडू कहते हैं कि जिस तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है उसकी श्राद्ध तिथि वही मानी जाती है. लेकिन शास्त्रों में कुछ विशेष तिथियों को विशेष रूप से बताया गया है, जिनका पालन करना आवश्यक माना जाता है. वे कहते हैं कि जिस व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो वह सौभाग्यवती स्त्री कहलाती है और उसकी मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है.
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वहीं, नौ की संख्या शुभ माना जाता है. संन्यासियों के श्राद्ध की तिथि द्वादशी मानी जाती है. इसके अलावा अकाल मृत्यु या किसी शस्त्र द्वारा मारे गए लोगों की तिथि चतुर्दशी मानी गई है. साथ ही वे कहते हैं कि यदि किसी की मृत्यु की तिथि का ज्ञान न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाए. इसके अलावा अश्विन कृष्ण प्रतिपदा के दिन भी मातामह श्राद्ध (नाना पक्ष) किया जाता है और यह श्राद्ध सुहागन स्त्री अपने दिवंगत पिता के निमित्त कर सकती है और यदि पुत्री विधवा है तो वह यह श्राद्ध नहीं कर सकती है.
खीर बनाकर ब्राह्मण भोजन- किराडू कहते हैं कि इसके अलावा श्राद्ध पक्ष में सबसे उत्तम खीर बनाना है क्योंकि खीर का भोजन देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना गया है. पूर्वजों के निमित्त खीर का भोजन करना सबसे उत्तम बताया गया है. किराडू कहते हैं कि आजकल प्रचलन में है कि लोग बड़ी संख्या में नातेदार और रिश्तेदारों और अन्य लोगों को भोजन के लिए बुलाते हैं लेकिन शास्त्र में श्राद्धपक्ष के दिन पूर्व के निमित्त केवल एक ब्राह्मण को ही भोजन कराने की बात कही गई है और इससे ज्यादा आयोजन शास्त्र के विरुद्ध है.
पिंडदान तर्पण हवन पूजन-ब्रह्म काल में ही सूर्योदय के साथ ही तर्पण करना श्रेयस्कर है. श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों के निमित्त हवन पूजन और वस्त्र दान का महत्व शास्त्रों में बताया गया है. किराडू कहते हैं कि गयाजी, कुरूक्षेत्र, हरिद्वार और अयोध्या में सरयू नदी के तट पर पूर्वजो के निमित्त श्राद्ध पक्ष पर हवन तर्पण पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है.
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इसीलिए इस पक्ष में 16 दिन होते हैं. एक मनौवैज्ञानिक पहलू यह है कि इस अवधि में हम अपने पितरों तक अपने भाव पहुंचाते हैं चूंकि यह पक्ष वर्षाकाल के बाद आता है अत: ऐसा माना जाता है कि आकाश पूरी तरह से साफ हो गया है और हमारी संवेदनाओं और प्रार्थनाओं के आवागमन के लिए मार्ग सुलभ है. ज्योतिष और धर्मशास्त्र कहते हैं कि पितरों के निमित्त यह काल इसलिए भी श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि इसमें सूर्य कन्या राशि में रहता है और यह ज्योतिष गणना पितरों के अनुकूल होती है.
क्यों नहीं होते 16 दिन शुभ कार्य- श्राद्धपक्ष का संबंध मृत्यु से है इस कारण यह अशुभ काल माना जाता है. जैसे अपने परिजन की मृत्यु के पश्चात हम शोकाकुल अवधि में रहते हैं और अपने अन्य शुभ, नियमित, मंगल, व्यावसायिक कार्यों को विराम दे देते हैं, वही भाव पितृपक्ष में भी जुड़ा है