बीकानेर.पौष माह की शुक्लपक्ष के पन्द्रहवें दिन की तिथि को पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है. पूस पूर्णिमा को स्नान, दान और विधिवत पूजा से व्यक्ति को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है (paush Purnima 2023). इस दिन दान, जप और स्नान का विशेष महत्व होता है. हरिद्वार, काशी और प्रयागराज में आस्था की डुबकी लगाने वालों का तांता लगा रहता है.
सूर्य और चंद्रमा का अद्भुत संगम-पौष माह को सूर्यदेव का महीना कहा गया है. भगवान भास्कर की विशेष पूजा अर्चना का विधान है. वहीं पौष पूर्णिमा तिथि को सूर्य और चंद्रमा का अद्भुत संगम भी देखने को मिलता है. कहते हैं इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के परिपूर्ण होता है इसलिए पौष पूर्णिमा के दिन सूर्य देव के साथ ही चंद्रमा की पूजा का भी विधान है. इससे जीवन में सुख-सौभाग्य और समृद्धि का आगमन होता है.
पूजा विधि- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और इसके बाद व्रत का संकल्प लें. सूर्य देव को अर्घ्य देकर विधि-विधान से पूजा करें. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पुष्प, फल, धूप-दीप आदि से पूजा करें. रात्रि में चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें. इस दिन दान पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. सत्यनारायण भगवान की कथा सुनते हैं, इससे भगवान श्री हरि विष्णु और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जिससे जीवन में सुख और शांति आती है. पौष पूर्णिमा की रात चंद्रमा और माता लक्ष्मी की आराधना से कुंडली में व्याप्त चंद्र दोष दूर होता है.