बीकानेर. महानंदा नवमी का व्रत माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष के महीनों के दौरान पड़ने वाले शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है. माघ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत रखा जाता है. गुप्त नवरात्रि के नवमी तिथि को पड़ने के कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है.
गुप्त नवरात्र की नवमी- माघ महीने की गुप्त नवरात्रि का समापन भी आज यानि सोमवार को होगा. गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि के दिन कुछ खास उपाय करने से मां दुर्गा भक्तों की विशेष मनोकामना पूरी करती हैं. वैसे तो गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा से प्रकट हुईं 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है, लेकिन गृहस्थ जीवन वालों को गुप्त नवरात्रि में सामान्य तरीके से नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करनी चाहिए. सुख, धन, समृद्धि पाने के लिए गुप्त नवरात्रि के आखिरी दिन कुछ उपाय महत्वपूर्ण हैं.
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दांपत्य जीवन से तनाव दूर- सुबह स्नान के बाद गणपति की पूजा करें और मां दुर्गा की तस्वीर के समक्ष दो मुखी घी दीपक लगाकर मां सिद्धिदात्री का स्मरण करते हुए उन्हें कुमकुम, सिंदूर, लाल फूल, चढ़ाएं और फिर 108 बार ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: मंत्र का जाप करें. मान्यता है इससे वैवाहिक जीवन में सुख का आगमन होता है. पति-पत्नी के बीच चल रही तनातनी दूर होती है. बता दें, 30 जनवरी रात 10:15 से 31 जनवरी सुबह 07:13 तक सर्वार्थ सिद्धि योग है. वहीं आज पूरे दिन रवि योग है. साथ ही सुबह 10:49 तक शुक्ल योग है.
संतान सुख और ग्रह बाधा- मां सिद्धिदात्री को नवमी के दिन खीर का भोग लगाएं और फिर 9 कन्याओं को खीर का प्रसाद बांट दें. इन कन्याओं से आशीर्वाद जरुर लें. कहते हैं ये उपाय वंश में वृद्धि करता है. मां सिद्धिदात्री की कृपा से साधक संतान सुख भोगता है. साथ ही कुंडली में समस्त 9 ग्रहों के अशुभ प्रभाव नहीं झेलने पड़ते हैं. मान्यतानुसार महानंदा नवमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही व्यक्ति को वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है.
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ये है महानंदा नवमी की व्रत कथा- महानंदा नवमी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी. उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था. लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली. एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर अच्छा सत्कार किया और ढेर सारे उपहार दिए. जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो. अनमने भाव से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का निमंत्रण तो दे दिया किंतु वह उदास हो गई.
साहूकार ने जब पूछा तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मीजी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है. मैं उनकी सेवा कैसे करूंगी? साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे. इसके बाद एक दिन लक्ष्मी जी के आगमन से पहले साहूकार की बेटी ने चौकी लगाई और चौमुख दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेती हुई बैठ गई. तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया. उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मीजी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई. थोड़ी देर के बाद लक्ष्मीजी गणेशजी के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की.