बीकानेर. देवी भगवती मां दुर्गा के 9 अवतारों की पूजा आराधना का विशेष पर्व होता है नवरात्र. हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र नव वर्ष प्रतिपदा से होती है. इस दिन पहले नवरात्र में घट स्थापना का विधान है. विशेष मुहूर्त में ही इसे स्थापित किया जाता है. सनातन धर्म में देवी मां की पूजा आराधना के लिए नवरात्र का विशेष महत्व देवी पुराण भागवत में बताया गया है. प्रतिपदा नवरात्र में घटस्थापना और पूजन से सभी मनोकामनाएं फलित होती हैं और उसे पूजा का लाभ प्राप्त होता है.
ऐसे होता है देवी देवताओं का आह्वान
पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि सनातन धर्म में किसी भी पूजा आयोजन और मांगलिक कार्य में कलश का पूजन होता है. इसका महत्व बताते हुए वे कहते हैं कि कलश को स्थापित करने के साथ ही भगवान वरुण का भी आह्वान किया जाता है. कलश में जल होता है और वरुण जल के देवता हैं. कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान शिव और मूल में ब्रह्मा का वास होता है. कलश के मध्य में देवियों का स्थान होता है. इसके अलावा चारों वेदों का भी कलश में आह्वान के जरिए स्थापना होती है.
रहती अमरत्व की भावना
नवरात्रा में घट स्थापना में गणेश का पूजन और उसका महत्व तो है ही लेकिन विधि अनुसार शास्त्रों में गृह प्रवेश में भी स्थापित होने वाले कलश की पूजा होती है. इसके पीछे देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत के लिए हुआ युद्ध की कहानी है. समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसलिए इसमें अमरत्व की भावना भी रहती है. पंडित किराडू के मुताबिक जल की प्रवृति शांत होती है और कलश की पूजा करने का अभिप्राय यही होता है कि हमारा मन भी शांत रहे और भक्ति भाव बना रहे. पूजा अर्चना करते समय हमारा मन भी जल की तरह निर्मल और शांत होना चाहिए. इसी कारण से किसी भी शुभ कार्य और मांगलिक कार्यों के अवसर पर कलश पूजा होती है.