बीकानेर. अंधेरे से उजाले की ओर का पर्व दीपावली (Diwali 2022) है. दीपावली के दिन हर जगह उजियारा नजर आता है. पुराने समय में घर प्रतिष्ठान और हर जगह मिट्टी के दीपक में घी और तेल डालकर रूई की बाती से रोशनी की जाने की परंपरा रही है. दीपावली के मौके पर 5 दिन तक होने वाली दीपोत्सव पर्व पर बड़ी संख्या में मिट्टी के दीपक की बिक्री होती रही है. बदलते समय में इन दीपक की जगह रंग बिरंगी फुलझड़ियों वाली लाइटों ने ले ली है. अब चाइनीज लाइट भी इन दीपक बनाने वाले कारीगरों पर भारी पड़ रही हैं. मिट्टी के दीपक लाना उनमें रूई की बाती और घी तेल डालकर जलाकर रोशनी करने की जगह इलेक्ट्रॉनिक लाइटों को घरों में लगाने की आदत ने इन मिट्टी के दीपक बनाने वाले कारीगरों को मुसीबत में डाल दिया है.
लोगों के घरों में उजियारा करने वालों के घर अंधेरा: दीपावली के मौके पर कई महीनों पहले मिट्टी के दीपक बनाकर दीपावली के दिन लोगों के घरों में उजियारा करने वालों के घर अंधेरा नजर आता है. बदलते समय में बढ़ती महंगाई और इलेक्ट्रॉनिक्स लाइटें इसका बड़ा कारण है. इसके अलावा कुम्भारों को सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन नहीं मिलना भी बड़ा कारण कहा जा सकता है. पहले लोग दीपावली के मौके पर परंपरा के मुताबिक मिट्टी के दीपक जलाया करते थे. लोग अब समय की व्यस्तता और दीपक लाकर लगाने की झंझट से बचने के लिए सीधे चाइनीज और दूसरी तरह की लाइट्स खरीद कर लाते हैं. जिसके चलते इन दीपक की बिक्री कम हो गई है.
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महंगाई भी कारण: दीपक बनाने वाले कारीगर हरी और ताराचंद बताते हैं कि हम लोग पहले खूब दीपक बेचा करते थे, लेकिन आजकल लोग दीपक खरीदने में कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं और केवल शगुन के नाम पर कुछ दीपक की खरीदारी कर औपचारिकता कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि पहले के हिसाब से मिट्टी महंगी मिलने लग गई है जिसके चलते लागत ज्यादा आती है और लोग दीपक खरीदते वक्त लोग मोलभाव कर सस्ता लेना चाहते हैं.