राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / state

बीकानेर ऊंट उत्सव में नजर आया 'रौबीला अंदाज', परम्परा संवाहक बनीं तीन पीढियां एक साथ आईं नजर

बीकानेर में होने वाले ऊंट उत्सव को पहचान दिलाने में यहां आने वाले रौबीलों का बहुत बड़ा हांथ है. राजस्थानी वेशभूषा में सज धज कर ये रौबीले, ऊंट उत्सव के साथ पावणों के स्वागत में गर्मजोशी के साथ शामिल होते हैं.

ऊंट उत्सव में रौबीले,  Roubile in Camel Festival
ऊंट उत्सव में रौबीले

By

Published : Jan 11, 2020, 10:12 PM IST

बीकानेर. जिले में 2 दिन तक अंतर्राष्ट्रीय ऊंट उत्सव की धूम है. देश और विदेश से सैलानी ऊंट उत्सव में शिरकत करने के लिए आते हैं और यहां की परंपरा और सभ्यता में रम जाते हैं. यह ऊंट उत्सव 26 सालों से बीकानेर में आयोजित हो रहा है और इस को सफल बनाने में यहां की रौबीलों की बड़ी भूमिका है.

बीकानेर ऊंट उत्सव में दिखे रौबीलों के अनोखे अंदाज

ऊंट उत्सव यह पहचान दिलाने में बीकानेर के रौबीले, यहां की संस्कृति से जुड़े लोग और लोक कलाकारों का बहुत बड़ा योगादान है. राजस्थानी वेशभूषा में सज धज कर ये रौबीले, ऊंट उत्सव के साथ पावणों के स्वागत में गर्मजोशी के साथ शामिल होते हैं. मेले में मौजूद यह रौबीले देसी और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहते हैं. यही कारण है कि ऊंट उत्सव के हर यादगार लम्हे में यह रौबीले जरूर होते है.

पढ़ें: बीकानेर में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय ऊंट उत्सव का आगाज

रौबिले का मतलब रणबांकुरे से है. प्राचीन रियासत काल में अपनी खास वेशभूषा के चलते सेना में अपना खास दमखम रखने वाले लोगों को रौबीले कहा जाता था. धीरे-धीरे बदलते युग में आधुनिकता का पर्दा पड़ गया और इन रौबीलों की पहचान के साथ इनकी वेशभूषा गायब हो गई. लेकिन बीकानेर में होने वाले ऊंट उत्सव में आज भी जहां पावणों का स्वागत होता है वहां रौबीलों की वेशभूषा में खुद को ढाल चुके परंपरा के संवाहक जरुर नजर आते हैं.

उत्सव के दौरान ईटीवी भारत ने इन लोगों से खास बातचीत की. इन लोगों बताया कि इस वेशभूषा की तैयारी वे अपने स्तर पर और अपने खर्च पर करते हैं. वहीं ऊंट उत्सव के लिए लाखों का बजट खर्च करने वाला पर्यटन विभाग, उन्हें किसी तरह का कोई प्रोत्साहन नहीं देता है. इन लोगों का कहना था कि सिर्फ इन दो दिनों के लिए, ये लोग साल भर अपनी दाढ़ी मूंछ को पूरा समय देते हैं. यह अपनी परंपरा के प्रति इन लोगों का एक समर्पण है कि ऊंट उत्सव में एक साथ तीन पीढ़ीयां रौबीले के रूप में पहुंचे.

रौबीले की वेशभूषा में अपने पोते के साथ पहुंचे पुखराज हर्ष का कहना था कि हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए. आधुनिकता की होड़ में आजकल बच्चे अपने इतिहास को भूलते जा रहे हैं. यही कारण है कि वे अपने पोते को इससे जुड़ना चाहते हैं और उसे इस ऊंट उत्सव में रौबीले के रूप में लेकर आए हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details